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... राजाश्रेणिक भगवान कि अमृतमय देशना श्रवणकर वापीस मगरमें जा रहा था. उस समय दोय देवता श्रेणिकराजांकि परिक्षा करने के लिये एकने उदरवृद्धि कर साध्विका रूप बनाया. दुकान दुकान सुंठ अजमाकि याचना कर रहीथी. राजा श्रेणिकने देख उसे कहा कि अगर तेरेको जो कुच्छ चाहिये तो मेरे वहां से लेजा परन्तु यहां फीरके धर्मकि हीलना क्यों करती है। साध्विने उत्तर दीया कि हे राजन् ! मेरेजेसी ३६००० है तुं कीस कीसको सामग्री देवेगा। राजाने कहाकी हे दुष्टा! छतीस हजार हे वह सर्व रत्नोंकि माला है तेरे जेसी तो एक तुंही है। दुसरा देव साधु बन एक मच्छी पकडनेकि जाल हाथमे लेके जाताको राजा देख उसे भी कहा कि तेरी इच्छा होगा वह हमारे यहां मील जायगा। तब साधु बोलाकि एसे १४००० है तुम कीस कीसको दोगे. राजा उत्तर दीया कि १४००० रत्नोकि माला है तेरे जेसा तुंही है यह दोनों देवतोने उपयोग लगाके देखा तो राजाके एक आत्मप्रदेशमें भी शंका नही हुइ. तब देवतावोंने बडीही तारीफ करी। एक मृत्युक (मटी) का गोला और एक कुंडलकि जाडी यह दो पदार्थ देके देव आकाशमे गमन करते हुवे । राजा श्रेणिकने कुंडल युगल तो नंदाराणीको दीया और मटीका गोला राणी चेलनाको दीया। चेलना उस मटीका गोलाको देख अपमानके मारी गोलाको फेक दीया, उस गोलाके फेक देनेसे फूटके एक दीव्य हार नीकला इति।
. इस हार और सींचाण हस्तीसे वहलकुमारका बहुतसा प्रेमथा इस धास्ते राजा श्रेणिक ओर राणी चेलनाने जीवतो हार और हस्ती वहलकुमरको दे दीया ।
पहलकुमर अपने अन्तेवर साथमे लेके चम्पानगरीके मध्य भागसे निकलके गंगा महा नदी पर जातेथे. वहांपर सीचांना