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करते हुवेको बडाही मानसिक दुःख होने लगा. बखत बखतपर दीलमें आति है कि मैं केसा अधन्य हुँ, अपुन्य हुँ, अकृतार्थ हुँ, कि मेरे पिता-देवगुरुकी माफीक मेरेपर पर्ण प्रेम रखनेवाले होनेपर भी मेरी कितनी कृतघ्नता है । इत्यादि दीलको बहुत रंज होनेके कारणसे आप अपनी राजधानी चम्पानगरी में ले गये और वहांही निवास करने लगा। वहांपर काली आदि दश भाइयोंको बुलायके राजके इग्यारा भाग कर एक भाग आप रखके शेष दश भाग दश भाइयोंको भेट दीया, और राज आप अपने स्वतंत्रतासे करने लगगये, और दशों भाइओंने कोणककी आज्ञा स्वीकार करी।
चम्पानगरीके अन्दर श्रेणिकराजाका पुत्र चेलनाराणीका अंगज वहलकुमार जोके कोणकराजाके छोटाभाइ निवास करता था श्रेणिकराजा जीवतो 'सीचांणक गन्ध हस्ती और अठारे सरोंवाला हार देदीया था। सींचाणक गन्ध हस्ती केसे प्राप्त हुवा यह बात मूलपाठमें नही है तथापि यहां पर संक्षिप्त अन्य स्थलसे लिखते है। ____एक वनमें हस्तीयोंका युथ रहता था उस युथके मालीक हस्तीको अपने युथका इतना तो ममत्व भाव था कि कीसी भी हस्तणीके बच्चा होनेपर वह तुरत मारडालता था कारण अगर यह बच्चा बडा होनेपर मुझे मारके युथका मालिक बन जावेगा। सब हस्तणीयोंके अन्दर एक हस्तणी गर्भवन्ती हो अपने पेरोंसे लंगडी हो १-२ दिन युथसे पीच्छे रेहने लगी, हस्तीने विचार किया कि यह पावोंसे कमजोर होगी। हस्तणीने गर्भ दिन नजीक जानके एक तापसके वृक्षजालीके अन्दर पुत्रको जन्म दीया. फीर आप युथमें सेमल हो गइ । तापसोंने उस हस्ती बचेको पोषण कर बडा किया और उसके सुंदके अन्दर एक