SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करसन, दीपायन, देवगुप्त, नारद, और अष्ट क्षत्री जातिके आचार्य है वह ऋजुवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थवणवेद इन्हीं च्यार वेद और इतिहास तथा पुरण वेद्यक ज्योतिष गीणत आदि अपने मत्तके सर्व शास्त्रोंके परम रेहस्य जानने में आगेश्वर है। __वह परिव नक दानधर्म शौचधर्म तीर्थ अभिषेश धर्म परूपते हुवे केहते है कि जब हम किंवत् ही अशुच होते है तब मट्टी लेपनकर स्नान करनेसे हम शौच होते है और उन्हीं परिवनकोंको तलाव कुवा समुद्र नदी आदिमें प्रवेश होन नहीं कल्पते है किन्तु रहस्तेमें आ जावे तो उत्तर शक्ते हैं और उन्होंकों कीसी प्रकारकी सवारी करना भी नहीं कल्पते है नाटक. ख्याल तमाप्ता देखना भी नहीं कल्पने है। हरीकायको पावोंसे चांपनी भी नहीं कल्पती है । च्यार प्रकारकि विकथावों तो वह अनर्थके हेतु समझते है । वह धातु लोहा पीतल कांप्ती सुवर्ण चान्दी आदि के वातन भी नहीं रखते है । मात्र एक तुंबाका पात्र मटीका पात्र और काष्टके पत्र खते है उन्होंके भी धातुका बंधन देना भी नहीं कल्पते है । वस्त्र जो रखते है वह भी नाना प्रकारके रंगके नहीं किन्तु धातु रंग ( भगवे वस्त्र ) के भी स्वल्प मूल्यवाले रखते है, उन्हीं परिवनिको को कीसी प्रकारके भूषण हार कुंडलादि पेहरना रखना नहीं कल्पते है किन्तु एक तांकि पवित्री ( वीटो) रखना कल्पता है। उन्ही परि० कीसी प्रकारकि पुप्पोंकि माला धारण करना नहीं कल्पता है किन्तु एक कानोंपर रखनेका पुप्प रखता है। और किसी प्रकारका लेपन चंन्दनादिका नहीं करते है किन्तु एक गंगाकी मट्टीका लेप करते है ।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy