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________________ (उ०) उक्त तापत महान कष्टक्रिया कर उत्कृष्ट ज्योतीषी देवोंके अन्दर उत्पन्न होते है वहां पर उत्कृष्टी एकपल्योपम और एकलक्ष वर्षकी स्थिति होती है परन्तु परभवके आराधी नही होते हैं अर्थात अज्ञान कष्ठ करनेसे अकाम निर्जरा होती है इन्होंसे देवतोंका पौद्गलीक सुख मीलता है किन्तु धर्मपक्षमें निस नही होती है। (११) हे भगवान ! ग्रामादि के अन्दर जो जैन दीक्षा लेनेवाले प्रवृजित, साधु कदर्प करनेवाले, कुचेष्टा करनेवाले असंबन्ध 'विषयकारी भाषा बोलनेवाले और जिन्होंको हमेशों गीत गायन श्रीय है, और आचार जिन्होंका निर्मल नहीं है इसी माफक बहुतसे काल दीक्षाप लके आलोचना न करते हुवे कालकरके काहा जाते है। (उ) हे गौतम । उक्त कदादि करनेवाले मरके प्रथम सौ धर्म देवलोकके अन्दर कदप जातिके देवतोंमे एक पल्योपम एक लक्ष वर्षोंकि स्थितिमे देवता पणे उत्पन्न होते हैं, किन्तु परलोकमे आज्ञाका आराधी नही होता है। (१२) हे भगवान । ग्रामदिके अन्दर एकेक परिव्रजक होते है संखमति जो अहंकारादि पांच तत्वकर जगतोत्पत्ति माननेवाले, योगि-अष्टांग निमित्त जाणकर कपीलमत्तिः भरविकमत्त, हंस जो नग्न प्रामादिमें रहै, परम हंस जो नग्न परन्तु वनवाप्त करे, स्थानान्तर गमन करने वाले, घरमें रहेके योग वृत्ति पाले, कृष्ण परिजनक नारयणके उपासक, इन्होंमें अष्ट ब्रह्मणोंकि जातिके परिव्रजक है जैसे । कृष्ण, करकंट, अबड, पारासर,
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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