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(८) - (९) हे भगवान । इस लोकके अन्दर ग्राम यावत् सन्निवे सके अन्दर एकेक मनुष्य होते है जो कि फक्त. अन्न और पाणी यह दोयद्रव्यके, भोगवनेवाले एसे तीनद्रव्य, सातद्रव्य, इग्यारे द्रव्य, भोगवनेवाले, गायके पालनेवाले, गौके पीछे चलनेवाले, धर्म पुन्य कार्यादिके शिक्षक, शास्त्रके पढनेवले, गृहस्थ धर्म सन्ध्यामान जप अर्चनादि भक्ति करनेवाले, और उन्हों को दही धृत माखन तेल फणीत रस मधु मंस मदिरा खाना नहीं कल्पते हैं किन्तु एक सरसबका तैल खाना कल्पते हैं अल्पइच्छा एसा मनुष्य अल्पारम्भ परिग्रहवाला पूर्ववत आयुष्य पुरण कर कहा जाता है ?
(उ०) हे गौतम वह म: प्य बाणमित्र देवते के अन्दर ८४ ० ० ० वर्षवाला देवता होता है ऋद्धि पूर्ववत् परन्तु परलोकका आराधी नही होता है।
(१०) हे भगवान ! जो ग्रामयावत सन्निवेमादिमें एकेक वनवास रेहनेवाले तापस होते है यथा-अग्निहोत्र करनेवाले, एक वस्त्र रखनेवाले, मटीके खाडामे रेहनेवाले, यज्ञ कर भोजन करनेवाले, अपने धर्मके श्रद्धालु, तापस सम्बन्धी पात्र रखनेवाले, केवल फलाहार, एक दफे पाणीमें, बहुत दफे पाणीमें तथा पाणीमें निवास करनेवाले, सर्व वस्तु पाणीसे धो के खानेवाले, शरीरके मटी लागके स्नान करनेवाले, गंगाके दक्षिण तथा उत्तर कांटे रेहनेवाले, संख बजाके; खडा रेहके भोजन करनेवाले मृगमसके हस्तीमंसके भोजन करनेवाले, दंड रखनेवाले, दिशपोषण करनेवाले इत्यादि कन्दमुलादिके भोजन करते हुवे-अनेक प्रकारसे कष्ट क्रिया करनेवाले तापस लोक आयुष्य पूर्णकर कहा जाते है ?