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________________ ११४ ... राजाश्रेणिकने और भी दोय तीनवार कहा परन्तु राणीने कुच्छ भी जवाब नही दीया । आखिर राजाने कहा, हे राणी! क्या तेरे एसी भी रहस्यकी बात है कि मेरेकेां भी नही कहती है ? राणीने कहा कि हे प्राणनाथ मेरे एसी कोइ भी वात नही है कि मैं आपसे गुप्त रखुं परन्तु क्या करूं वह वात आपको केहने योग्य नहीं है । राजाने कहा कि एसी कोनसी बात है कि मेरे सुनने लायक नहीं है मेरी आज्ञा है कि जो बात हो सो मुझे कह दो। यह सुनके राणीने कहा कि हे स्वामि! उस स्वप्न प्रभावसे मेरे जो गर्भ के तीन मास साधिक होने से मुझे दोहला उत्पन्न हुवा है कि मैं आपके उदरके मांसके शुले मदिराके साथ भोगवती रहुं । यह दोहला पुर्ण न होनेसे मेरी यह दशा हुई है। राजा श्रेणिक यह बात सुनके बोला कि हे देवी! अब आप इस बात कि बिलकुल चिंता मत करो. जिस रीतीसे यह तुमारा दोहला सम्पूर्ण होगा. एसा ही में उपाय करुंगा इत्यादि मधुर शरोसे विश्वास देके राजाश्रेणिक अपने कचेरीका स्थान था वहां पर आ गये। राजाश्रेणिक सिंहासन पर बैठके विचार करने लगा कि अब इस दोहले को कीस उपायसे पूर्ण करना. उत्पातिक, विनयिक, कर्मीक, परिणामिक इस च्यारों बुद्धियोंके अन्दर राजाने खुब उपाय सोच कर यह निश्चय किया कि यातो अपने उदरका मांस देना पडेगा. या अपनि जबान जावेगा. तीसरा कोइ उपाय राजाने नही देखा। इस लिये राजा शुन्योपयोग होके चिंता कर रहा था। - इतनेमें अभयकुंमर राजाको नमस्कार करनेके लिये आया, राजाको चिंताग्रस्त देखके कुंमर बोला। हे तातजी! अन्य
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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