________________
११३
बुद्धि संयुक्त साम, दाम, दंड, भेदका जाणकार, राजतंत्र चलानेमें बडाही दक्ष था. श्रेणिकराजाके अनेक रहस्य कार्य गुप्त कार्य करने में अग्रेश्वर था।
राजा श्रेणिकके चेलना नामकिराणी एक समय अपनि सुखशय्या के अन्दर न सुती न जागृत एसी अवस्थामै राणीने सिंहका स्वप्न देखा. राजासे कहना. स्वप्नपाठकोंको बोलाना. स्वप्नोंके अर्थ श्रवण करना. यह सर्व गौतमकुमारके अधिकारसे देखना।
गणी चेलनाको साधिक तीन मास होनेपर गर्भके प्रभावसे दोहले उत्पन्न हुवे. किं धन्य है जो गर्भवन्ती मातावों जिन्होंका जीवित सफल है कि राजा श्रेणिकके उदरका मांस जिसकों तेलके अन्दर शोला बनाके मदिरा के साथ खाती हुइ भोगवती हुइ रहे अर्थात् दोहलाको पूर्ण करे । एसा दोहलेको पुर्ण नहीं करती हुइ चेलना राणी शरीरमें कृष बन गइ. शरीर कम जोर. पंडररंग. बदन पिलखा. नेत्रोंकि चेष्टा आदि दीन वन गइ औरभी चेलनाराणी, पुष्पमाला गन्ध वस्त्र भूषण आदि जो विशेष उपभोगमें लिये जातेथे-उसको त्यागरूप कर दिया था और अहोनिश अपने गालोंपर हाथ दे के आतेध्यान करने लगी। .. उस समय चेलना राणीके अंगकि रक्षा करनेवाली दासीयोंने चेलना राणीकि यह दशा देखके राजा श्रेणकसे सर्व वात निवेदन कि । राजा सर्व शत सुनके चेलनाराणीके पास आया
और चेलना राणीको सुखे लुखे भूखे अर्थात् शरीरकि खराब चेष्टा देख बोलाकि हे प्रिये! आपका यह हाल क्यो हो रहा है. तुमारे दोलमें क्या वात है वह सब हमकों कहो. ? राणी राजाका वचन सुना, परन्तु पीच्छा उत्तर कुच्छभी न दीया. वातभी ठीक है कि उत्तर देने योग्य वातभी नहीथी।