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दिनोंमे जब मैं आपके चरण कमलों में मेरा शिर देता हुं तब आप मुझे बतलाते है राज कि वार्ता अलाप करते है। आजतो कुच्छ भि नही, इतना ही नही बल्के मेरे आनेका भि आपको स्याद ही ख्याल होगा। तो इसका कारण क्या है मेरे मोजुदगीमें आपको इतनि क्या फीकर है ?
राजाश्रेणिकने चेलनाराणीके दोहले सबन्धी सब वात कही हे पुत्र ! मैं इसी चिंतामें हुं कि अब राणी चेलनाका दोहला केसे पुर्ण करना चाहिये। यह वृत्तान्त सुनके अभयकुमार बोला हे पिताजी! आप इस बातका किंचित् भी फीकर न करे, इस दोहलाको मैं पुर्ण करूगा यह सुन राजाको पूर्ण विसवास होगया. अभयकुमार राजाको नमस्कार कर अपने स्थानपर गया. वहां जाके विचार करने पर एक उपाय सोचके अपने रहस्यके कार्य करनेवाले पुरुषोंकों बुलवाये। और कहेने लगे कि तुम जाथों मांस वेचनेवालोंके वह तत्कालिन मांस रुधिर संयुक्त गुप्तपणे ले आवो. इदर राजा श्रेणिकसे संकेत कर दीया कि जब आपके रदय पर हम मंस रखके काटेंगे तब आप जौरसे पुकार करते रहना, राणी चेलनाकों एक किनातके अन्तरमे बेठादी इतनेमे वह पुरुष मांस ले आये. बुद्धिके सागर अभयकुमरने इसी प्रकारसे राणी चेलनाका दोहला पुर्ण कर रहाथा कि राजाके उदर पर वह लाया हुवा मंस रख उसको काट काटके शुले बनाके राणीको दीया राणी गर्भके प्रभावसे उस्को आचरण कर अपने दोहलेको पुर्ण कीया। तब राणीके दीलको शान्ति हुइ ।
नोट-शास्त्रकारोंने स्थान स्थान पर फरमाया है कि है भव्य जीवो! कीसी जीवोंके साथ वैर मत रखो. कर्म मत बान्धो बजाने वह वैर तथा कर्म किस प्रकारसे कीस बखतमें उदय