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पैदलके परिवार से रथमुशल संग्राम में गया है। पहले दिन चेटक ' नामका राजा जो श्रेणिकराजाका सुसरा चेलनाराणीका पिता, कोकराजाके नानाजी कालीकुमारके सामने आया कालीकुमारने कहा कि हे वृद्धवयधारक नानाजी ! आपका बाण आने दिजिये. नहीं फीर बाण फेंकनेकी दिलहीमें रहेगी । चेटकराजा पार्श्वनाथजीका श्रावक था वह वगर अपराधे किसीपर हाथ नहीं उठाते थे। कालीकुमारने धनुषवाणको खुब जोर से चढाया. अपने ढींचणको जमीनपर स्थापन कर धनुष्यकी फाणचको कानतक लेजाके जोर से बाण फेंका परन्तु चेटकराजाको बाण लगा नहीं. आता हुवा बाणको देख चेटकराजाको बहुत गुस्सा हुवा | अपना अपराधि जानके चेटकराजाने पराक्रम से बाण मारा जिससे जेसे पर्वतकी ट्रंक गीरती है इसी माफीक एकही बाणमें कालीकुमार मृत्युधर्मको प्राप्त हो गया। बस, सामंत शीतल हो गये, ध्वजापताका निचे गिर पडी वास्ते हे कालीराणी ! तुं तेरा कालीकुमार पुत्रको जीवता नही देखेगी ।
कालीराणी भगवानके मुखाविन्दसे कालीकुँमर मृत्युकि वात श्रवणकर अत्यन्त दुःखसे पुत्रका शोक के मारे मुच्छित होके जेसे छेदी हुइ चम्पककी लता धरतीपर गिरती है इसी माफीक कालीराणी भी धरतीपर गिर पडी सर्व अंग शीतल हो गया.
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महुर्त्तादि कालके बाद में कालीराणी सचेतन होके भगवान से
१ चेटकराजाको देवीका वर था वास्ते उनका बाण कभी खाली नहीं जाता था।
* छद्मस्थोंका यह व्यवहार नही है कि किसीको दुख हो एसा कहे परन्तु सभविष्यका लाभ जाना था. कल्पातितोंके लिये कीसी प्रकारका कायदा नही होता है । इसी कारण से कालीराणीने दीक्षा ग्रहन करी थी ।