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________________ मति थे वह धारणकर बहुतसे नोकर चाकर खोजा दास दासीयोके परिवारसे बहारके उत्स्थान शालमें आइ, वहांपर अनुचरोने धार्मीक रथको अच्छी सजावट कर तैयार रखा था, कालीराणी उस रथपर आरूढ हो चम्पानगरीके मध्यबजारसे निकलंके पूर्णभद्रोद्यानमें आइ, रथसे उतरके सपरिवार भगवानको वन्दननमस्कार कर सेवा-भक्ति करने लगी। - भगवान् वीरप्रभुने कालीराणी आदि श्रोतागणोंको विचित्र प्रकारसे धर्मदेशना सुनाइ कि हे भव्य ! इस अपार संसारके अन्दर जीव परिभ्रमन करता है इसका मूल कारण आरंभ और परिग्रह है। जबतक इन्होंका परित्याग न किया जाय. वहांतक संसारके जन्म, जरा, मृत्यु, रोग, शोक इत्यादि दुःखसे छुटना नहोगा, वास्ते सर्वशक्तिवान् बनके सर्व व्रत धारण करो अगर एसा न बने तो देशव्रती बनो, प्रहन किये हुवे व्रतोंको निरतिचार पालनेसे जीव आराधि होता है. आराधि होनेसे ज० तीन उत्कृष्ट पन्दरा भवमें अवश्य मोक्ष जाता है इत्यादि देशना दी। धर्मदेशना श्रवण कर श्रोतागण यथाशक्ति त्याग वैराग्य धारण किया उस समय कालीराणी देशना श्रवण कर हर्ष संतोषको प्राप्त हो वोली कि हे भगवान् ! आप फरमाते है वह सब मत्य है. मैं संसारसमुद्रके अन्दर इधर उधर गोथा खा रही हूँ। हे करूणासिन्धु ! मेरा पुत्र कालीकुमार सैन लेके कोणकराजाके साथ रथमुशल संग्राममे गया है तो क्या वह शत्रयोंपर विजय करेगा या नहीं? जीवेगा या नहीं? हे प्रभो! में मेरा पुत्रको जीवता देदुंगी या नहीं? ___ भगवान ने उत्तर दिया कि हे कालीराणी! तेरा पुत्र तीन बजार हस्ती, तीन हजार अश्व, तीन हजार रथ और तीन कोड
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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