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इन्ही २१ बोलोमें उदर, कान, होठ, जिह्वा ये च्यार बोलमें हर नहीं था। शेष बोलोमे मंस रक्त रहित केवल हाडपर चरम विटा हुवा नशा आदिसे बन्धा हुवा शरीर मात्रका आकार दीखाइ दे रहा था । उठते बेठते समय शरीर कडकड बोल रहा था। पांसली आदिकी हड्डीयों मालाके मणकोंकी माफीक अलग अलग गीनी जाती थी, छातीका रंग गङ्गाकी तरंग समान तथा सुका सर्पका खोखा मुताबिक शरीर हो रहा था, हस्त तो सुका थोरोंके पंजे समान था, चलते समय शरीर कम्पायमान हो जाता था, मस्तक डीगडीग करता था, नेत्र अन्दर बेठ गया था, शरीर निस्तेज हो रहा था, चलते समय जेसे काष्टका गाडा, सुके पत्तेका गाडा तथा कोडीयोंके कोथलोंका अवाज होता है इसी माफीक धन्नामुनिके शरीरसे हड्डीयोंका शब्द होता था हलना, चलना, बोलना यह सब जीवशक्तिसे ही होता था। विशेषाधिकार खंदकजीसे देखो ( भगवती सूत्र श० २ उ०१)
इतना तो अवश्य था कि धन्नामुनिके आत्मबलसे उन्होंका तपतेजसे शरीर बडा ही शोभायमान दीखाइ दे रहा था। ___ भगवान् वीरप्रभु भूमंडलको पवित्र करते हुवे राजगृह नगरके गुणशीलोद्यानमें पधारे।श्रेणिकराजादि भगवानको वन्दनको गया। देशना सुनके राजा श्रेणिकने प्रश्न किया कि हे करुजासिन्धु! आपके इन्द्रभूति आदि चौदा हजार मुनियोंके अन्दर दुष्कर करणी करनेवाला तथा महान् निर्जरा करनेवाला मुनि कोन है ?
भगवानने उत्तर फरमाया कि हे श्रेणिक! मेरे चौदा हजार मुनियोंके अन्दर धन्ना नामका अनगार दुष्कर करणीका करनेवाला है महानिर्जराका करनेवाला है।