________________
१०५.
श्रेणिकराजाने पुछा कि क्या कारण है ?
भगवान ने फरमाया कि हे धराधिप ! काकंदी नगरीमें भद्रा शेठाणीका पुत्र बत्तीस रंभावोंके साथ मनुष्य संबन्धी भोग भोगव रहा था। वहांपर मेरा गमन हुवा था, देशना सुन मेरे पास दीक्षा लेके छठ छठ पारणां, पारणे आंबिल यावत् धन्नामुनिका शरीरका संपूर्ण वर्णन कर सुनाया । " इस वास्ते धन्ना०
29
श्रेणिकराजा भगवानको वन्दन - नमस्कार कर धन्नामुनिके पास आया, वन्दन - नमस्कार कर बोला कि हे महाभाग्य ! आपको धन्य है पुर्वभवमें अच्छा पुन्योपार्जन कीया था कृतार्थ है आपका मनुष्यजन्म, सफल किया है आपने मनुष्यभव इत्यादि स्तुति कर वन्दन कर भगवानके पास आया अर्थात् जेसा भगवान ने फरमायाथा वेसा ही देखनेसे बडी खुशी हुई भगवानको वन्दकर अपने स्थानपर गमन करता हुषा ।
नोमुनि एक समय रात्रीमें धर्म चितवन करता हुवा एसा feere fकया कि अब शरीर से कुच्छ भी कार्य हो नहीं सका है पौद्गल भी थक रहा है तो सूर्योदय होते ही भगवानसे पूछके त्रिपुलगिरि पर्वत पर अनसन करना ठीक है सूर्योदय होते ही भगParafts आज्ञा ले सर्व साधु साध्वियों से क्षमत्क्षामणा कर स्थिवर मुनियोंके साथ धीरे धीरे विपुलगिरि पर्वतपर जाके व्यारो आहारका त्याग कर पादुगमन अनसन कर दीया आलोचन पूर्वक एक मासका अनसनके अन्तमे समाधिपूर्वक काल कर उ लोकमें सर्व देवलोकोंके उपर सर्वार्थ सिद्ध वैमानमें तीन सागरोपमकी स्थितिवाले देवता हो गये अन्तर महुर्त में पर्याप्ता भावको प्राप्त हो गया ।
स्थिवर भगवान धन्ना मुनिको काल किया जानके परि