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________________ १०१ एसा पारणे आहार लेना । इस अभिग्रहमें भगवानने भी आज्ञा देदी कि 'जदासुखं'। ___ धन्ना अनगारके पहला छठ तपका पारणा आया तब पहले पहोरमें स्वाध्याय करी दुसरे पहोरमें ध्यान (अर्थचिंतवन) कीया तीसरे पहोरमें मुहपत्ती तथा पात्रादि प्रतिलेखन किया बादमें भगवानकी आज्ञा लेके काकंदी नगरीमें समुदाणी गौचरी करने में प्रयत्न कर रहे थे । परन्तु धन्ना मुनि आहार केसा लेता था कि बिलकुल रांक वणीमग पशु पंखी भी इच्छा न करे इस कारणसे मुनिकों आहार मीले तो पाणी नही मीले और पाणी मीले तो आहार नही मीले तथापि उसमें दीनपणा नही था व्यग्रचित्त नही शुन्य चित्त नही कुलुषित चित्त नही विषवाद नही, समाधिचित्तसे यत्नाकी घटना करता हुवा एषणा संयुक्त निदोषाहारकी खप करता हुवा यथापर्याप्ति गौधरी आ जानेपर काकंदी नगरीसे नी. कल भगवान के समिप आये भगवानको आहार दीखाके अमूछीत अहित सर्प जेसे वीलमे शीघ्रता पूर्वक जाता है इसी माफीक स्वाद नही करते हुवे शीघ्रता पूर्वक आहार कर तप संयममे रमणता कर रहाथा इसी माफीक हमेशां प्रति पारणे करने लगे। एक समय भगवान वीरप्रभु काकंदी नगरीसे विहार कर अन्य जनपद देशमे विहार करते हुवे धन्नो अनगार तपश्चर्या करता हुवा तथा रूपके स्थिवर भगवानका विनय भक्ति कर हग्यारा अंगका ज्ञान अभ्यासभी कियाथा । धन्ना अनगारने प्रधान घोर तपश्चर्या करी जिसका शरीर इतना तो कृष-दुर्बल बन गयाकि जिस्का व्याख्यान खुद शास्त्रकारोंने इस मुजब कीया है। (१) धन्ना अनगारका पग जेसे वृक्षकि शुकी हुइ छाली तथा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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