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________________ शेठ सेनापति होके पुन्यफलको भोगवता है कभी रंक दरिद्री पशुधादि होके रोग-शोकादि अनेक प्रकारके दुःख भोगवता है और अज्ञानके वस हो यह जीव इन्द्रियजनित क्षण मात्र सुखोंके लिये दीर्घकाल तक दुःख सहन करते है। इसी दुःखोंसे छुडाने वाला सम्यक् शान दर्शन चारित्र है वास्ते हे भव्य जीवों! इसी सर्व सुख संपन्न चारित्रको स्वीकार कर इन्हींका ही पालन करों तांके आत्मा सदैवके लिये सुखी हो। __ अमृतमय देशना श्रवण कर यथाशक्ति त्याग वैरागको धारण कर परिषदाने स्व स्थ स्थान गमन कीया। धन्नोकुमर देशना श्रवणकर विचार किया कि अहो आज मेरा धन्य भाग्य है कि एसा अपूर्व व्याख्यान सुना। और जगतारक जिनेन्द्र देवोने फरमाया कि यह संसार स्वार्थका है पौदगलीक सुखोंके अन्ते दुःख है क्षण मात्रके सुखोंके लिये अज्ञानी जीवों चीर कालके दुःख संचय करते है यह सब सत्य है. अब मुझे चारित्र धर्मका ही सरणा लेना चाहिये । धन्नोकुमार भगवानसे वन्दन नमस्कार कर बोला कि हे करुणासिन्धु । मुझे आपका प्रवचन पर श्रद्धा प्रतीत आइ और यह वचन मुझे रुचता भी है आप फरमाते है एसे ही इस संसारका स्वरुप है मैं मेरी माताको पुच्छके आपके पास दीक्षा ग्रहन करुगा “जहासुखम्" परन्तु हे धन्ना । धर्म कार्यमें प्रमाद नही करना चाहिये । धन्नोकुमर भगवान कि आज्ञाकों स्वीकार कर वन्दन नमस्कार कर अपने च्यार अश्वके रथपर बेठके स्व स्थानपर आया निज मातासे अर्ज करी कि हे माता आज में भगवानकि देशना • श्रवण कर संसारसे भयभ्रांत हुवा हुं । वास्ते आप आज्ञा देवे मैं भगवानके पास दीक्षा ग्रहन करूं। माताने कहा कि हे लालजी
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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