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________________ संबन्धी कामभोग भोगव रहा था अर्थात् बत्तीस प्रकारके नाटक आदि से आनन्दमें काल निर्गमन कर रहा था । यह सब पूर्व सुकृतका ही फल है। पृथ्वीमंडलको पवित्र करते हुवे बहुत शिष्योंके परिवारसे भगवान वीरप्रभुका पधारना काकंदी नगरीके सहस्राम्रवनोचानमें हुवा। कोणक राजाकी माफीक जयशत्रु राजा भी च्यार प्रकारकी सैनाके साथ भगवानको वन्दन करनेको जा रहा था, नगरलोक भी स्नानमजन कर अच्छे अच्छे वस्त्राभूषण धारण कर गज, अश्व, रथ, पिंजस, पालखी, सेविका समदाणी आदिपर सवार हो और कितनेक पैदल भी मध्यबजार होके भगवानको चन्दन करनेको जा रहे थे। - इधर धन्नोकुमार अपने प्रासादपर बैठो हुवो इस महान् परिषदाको एकदिशाम जाती हुइ देखके कंचुकी पुरुषसे दरियाफ्त करनेपर ज्ञात हुवा कि भगवान् वीरप्रभुको वन्दन करनेको जनसमुह जा रहे है । बादमें आप भी च्यार अश्ववाले रथपर बैठके भगवानको वन्दन करनेको परिषदाके साथमें हो गये। जहाँ भगवान विराजमान थे वहां आये सवारी छोडके पांच अभिगम कर तीन प्रदक्षिणा दे वन्दन नमस्कार कर सब लोग अपने अपने योग्य स्थानपर बेठ गये । आये हुवे जनसमुह धर्माभिलाषीयोंको भगवानने खुब ही विस्तार सहित धर्मदेशना सुनाइ । जिस्मै भगवानने मुख्य यह फरमाया था कि.. हे भव्य जीवो! यह जीव अनादिकालसे संसारमें परिभ्रमन कर रहा है जिस्का मूलहेतु मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय और योग है इन्होंसे शुभाशुभ कर्मोका संचय होता है तब कभी राजा महाराजा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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