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इदरसे अर्जुनमाली ओर बन्धुमती भार्या दोनों पुष्प लेके मोगरपाणी यक्षके पासमें आये। पुष्पोंका ढेर कर ( चढाके अर्जुनमाली अपना शिर झुकाके यक्षकों प्रणाम करता था इतनेमें तो पीच्छेसे वह छे गोटीले पुरुष आके अर्जुनमालीको पकड निबिड (धन) बन्धनसे बान्ध कर एक तर्फ डाल दीया ओर बन्धुमतीमालणके साथ वह लंपट भोग भोगवना । मैथुन कर्म सेधन करने लग गये ) शरू कर दीया।
अर्जुनमाली उस अत्याचारको देखके विचार कीयाकि मैं बालपणेसे इस मोगरपाणी यक्ष प्रतिमाकी सेवा-भक्ति करता हूं और आज मेरे उपर इतनी विपत्तपडने परभी मेरी साहिता नहीं करता है तो न जाणे मोगरपाणी यक्ष हे या नही । मालम होता है कि केवल काष्टकी प्रतिमाही बेठा रखी है इसी माफीक देवपर अश्रद्धा करता हुवा निराश हो रहा था।
इदर मोगरपाणी यक्षने अर्जुनमालीका यह अध्यवसाय जानके आप ( यक्ष ) मालीके शरीरमे आके प्रवेश किया । बस । मालीके शरीरमे यक्षका प्रवेश होते ही वह बन्धन एकही साथ में तुट पडे और जो सहस्र पलसे बना हुवा मुद्गल हाथमे लेके छ गोटीले पुरुष और सातवी अपनी भार्या उन्होंका चकचुर कर अकार्यका प्रत्यक्षमे फल देता हुवा परलोक पहुंचा दिया।
अर्जुन मालीको छे पुरुष और सातवी स्त्रीपर इतना तो द्वेष हो गया कि अपने शरीरमें यक्ष होनेसे सहस्रपलवाले मुद्गल द्वारा प्रतिदिन छे पुरुष और एक स्त्रीको मारनेसे ही किंचित् संतोष होता था अर्थात् प्रतिदिन सात जीवोंकी घात करता था। यह बात राजगृह नगरमें बहुतसे लोगों द्वारा सुनके राजा श्रेणिकने मगरमें उदूघोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य तृण, काष्ट, पाणी