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आदि वंशपरंपरा चीरकालसे उसी मोगरपाणी यक्षकी सेवाभक्ति करते आये थे और यक्ष भी उन्होंकी मनकामना पुर्ण करता था।
मोगरपाणी यक्षकी प्रतिमाने सहस्रपल लोहसे बना हुवा मुद्गल धारण कर रखा था । अर्जुनमाली बालपणेसे मोगरपाणी यक्षका परम भक्त था। उन्हीको सदैवके लिये एसा नियम था कि जब अपने घरसे प्रतिदिन बगेचेमें जाके पांच वर्णके पुष्प चुटके एकत्र कर अपनी बन्धुमती भार्या के साथ पुष्प ले मोगरपाणी यक्षके देवालयमें जाके पुष्पो चढाके ढींचण नमाके परिणाम कर फीर राजगृहनगरके राजमार्गमें वह पुष्पोंका विक्रय कर अपनी आजीविका करता था।
राजगृह नगरके अन्दर छ गोटीले पुरुष वस्ते थे, वह अच्छे और खराब कार्य में स्वेच्छासे वीहार करतेथे । एक समय राजगृह नगर महोत्सव था! वास्ते अर्जुनमाली अपने घरसे पुष्प भरणेकी छाबों ग्रहणकर पुष्प लानेकों अपनी वन्धुमती भार्याकों साथ ले बगेचामें गयेथे । वहांपर दम्पति पुष्पोंकों चुटके एकत्र कर रहेथे। .
उसी समय वह छ गोटीले पुरुष क्रीडा करते हुवे मोगर पाणी यक्षके देवालयमें आये इदर अर्जुनमाली अपनी भार्याके साथ पुष्प ले के मोगरपाणी यक्षके मन्दिरकि तर्फ आ रहेथे । जब छे गोटीले पुरुषोंने बन्धुमती मालणका मनोहर रूप देखके विचार किया कि अपने सव एकत्र हो इस अर्जुनमालीको निबिड बन्धनसे बान्ध कर इस बन्धुमती भार्या के साथ मनुष्य - संबन्धी भोग ( मैथुन ) भोगवे । एसा विचार कर छे वों गोटीले पुरुष उस मन्दिरके किंवाडके अन्तरमे अनबोलते हुवे गुपचुप छिपकर बेठ गये।