SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्यके अन्दर पधारे, राजा श्रेणिक, चेलणा राणी और नगरजन भगवानको वन्दन करनेको गये, यह बात माकाइ गाथापति श्रवण कर वह भी भगवानको वन्दन करनेको गये । भगवानने उस आइ हुइ परिषदाको अमृतमय धर्मदेशना दी । श्रोतागण सुधारस पान कर यथाशक्ति त्याग-वैराग धारण कर स्वस्थान गमन किया। माकाइ गाथापति देशना सुन संसारको असार जान कर अपने जेष्टपुत्रको कुटुम्बभार सुप्रत कर भगवानके पास दीक्षा ग्रहन करी। माकाइमुनि इर्यासमिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्यको पालन करता हुवा तथारूपके स्थिवर भगवन्तोंकी भक्ति विनय कर एकादशांगका ज्ञानाभ्यास किया। बादमें बहुतसी तपश्चर्या करते हुवे महामुनि गुणरत्न संवत्सर तप कर अपने शरीरको जर्जरित बना दीया। सर्व मोला वर्ष दीक्षा पालके अन्तिम विपुल (व्यवहारगिरि) गिरि पर्वतके उपर एक मासका अनशन कर केवलज्ञान प्राप्त कर शाश्वत सुखको प्राप्त हुवे । इति प्रथम अध्ययन । इसी माफीक किंकम नामका गाथापति भगवान समीपे दीक्षा ले व्यवहारगिरि तीर्थपर मोक्षप्रामि करी । इति दुसरा अध्ययन समाप्तं । तीसरा अध्ययन-राजगृह नगर, गुणशीला उद्यान, श्रेणिक राजा, चेलणा राणी वर्णन करने योग्य जेसे पूर्व कर आये थे। उसी राजगृह नगरके अन्दर अर्जुन नामका माली रहता था जिन्होंके बन्धुमती नामकी भार्या अच्छे स्वरूपवन्ती थी। उसी नगरके बहार अर्जुन मालीका एक पुष्पाराम नामका बगेचा था यह पंच वर्णके पुष्पोरूपी लक्ष्मीसे अच्छे सुशोभीत था। उसी बगेचाके अति दूर भी नहीं अति नजीक भी नहीं एक मोगरपाणी यक्षका यक्षायतन था। वह अर्जुन मालीके बापदादा परदादा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy