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अमन्ता मुनिके वचनमें असत्यकी शंका कर मेरे पास पुछनेको आइ है। क्या यह बात सत्य है ? हाँ भगवान यह बात सत्य है में आपसे पुछनेको ही आइ हुँ ।
भगवान नेमिनाथ फरमाते है कि हे देवकी ! तुं ध्यान देके सुन | इसी भरतक्षेत्रमें भद्दलपुर नगरके अन्दर नागसेठ और सु. लसा भार्या निवास करते थे । सुलसाको बालपणे में एक निमतीयेने कहा था कि तुं मृत्यु बालकको जनम देवेगी उस दिनसे सुलसाने हिरणगमेसी देवकी एक मूर्ति बनाके प्रतिदिन पुजा कर पुष्प चडाके भक्ति करने लगी। एसा नियम कर लीया कि देव की पुजा भक्ति विना किये आहारनिहार आदि कुछ भी कार्य नही करना । एसी भक्तिसे देवकी आराधना करी। हिरणगमेसी देव सुलसाकी अति भक्तिसे संतुष्ट हुवा । हे देवकी ! तुमारे और सुलसाके साथही में गर्भ रहता था और साथही में पुत्रका जन्म होता था उसी समय हिरणगमेषी देव सुलसाके मृत बालक तेरे पास रखके तेरा जीता हुवा बालकको सुलसाको सुप्रत कर देता था । वास्ते दरअसल वह छवों पुत्र सुलसाका नही किन्तु तुमारा ही है। एसे भगवानके वचन सुन देयकीको बडे ही हर्ष संतोष हुवा भगवानको वन्दन नमस्काह कर जहाँ पर छे मुनि था वहां पर आई उन्होंको वन्दन नमस्कार कर एक दृष्टि से देखने लगी इतनेमें अपना स्नेह इतना तो उत्सुक हो गया कि देवकीके स्तनोमे दुध वर्षने लगा और शरीरके रोम रोम वृद्धिको प्राप्त हो देह रोमांचित हो गइ । देवकी मुनिओंको वन्दन नमस्कार कर भगवानके पास आके भगवानको प्रदक्षिणापुर्वक वन्दन करके अपने रथ पर बेठके निज आवास पर आगह ।
देवकीराणी अपनि शय्याके अन्दर बेठीथी उन्ही समय