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________________ एसा अध्यवसाय उत्पन्न हुवाकि में नलकुबेर सदृश सातपुत्रोंकों जन्म दीया परन्तु एक भी पुत्रको मेरे स्तनोंका दुध नही पीलाया लाडकोड नही कीया रमत नही रमाया खोलेमे-गोदमें नही हुलराया बच्चोंकि मधुर भाषा नही सुनी इत्यादि मेने कुच्छभी नही कीया, धन्यहे जगतमें वह माताकि जो अपने बालकोंको रमाते है खेलाते है यावत् मनुष्यभवकों सफल करते है। मैं जगतमें अधन्या अपुन्या अभागी हु कि सात पुत्रों में एक श्रीकृष्णको देखती ह सो भी छे छे माससे पगवन्दन मुजरा करनेको आता है। इसी बात कि चिंतामे माता बैठीथी। - इसनेमें श्री कृष्ण आया और माताजी के चरणों में अपना शिर जुकाके नमस्कार किया; परन्तु देवकितो चिंताग्रस्तथी। उन्होंकों मालमही क्यों पडे । तब श्री कृष्ण बोलाकि हे माताजी अन्यदिनोंमें मैं आताहुं तब आप मुझे आशिर्वाद देते हैं मेरे शिरपर हाथ धरके बात पुछते हो ओर आज में आया जिस्की आपको मालमही नहीं है इसका क्या कारण है ? देवकी माता बोली कि हे षुत्र ! भगवान नेमिनाथद्वारा मालुम हुइ है कि मैं सात पुत्र रत्नको जनम दिया है जिस्में तुं एकही दीखाई देताहै । छ पुत्रतो सुलसाके वहां वृद्धिहोके दीक्षा ले लि| तुं भी छे छे माससे दीखाइ देता है वास्ते धन्य है वह माताओंको कि अपने पुत्रोंको बालवयमे लाड करे. . श्रीकृष्ण बोलाकि हे माताजी आप चिंता न करो। मेरे छोटाभाइहोगा एसा मे प्रयत्न करूगा अर्थात् मेरे छोटाभाइ अवश्य होगा उसे आप खेलाइये ( एसे मधुर वचनोंसे माताजीकों संतोष देके श्री कृष्ण वहांसे चलके पौषदशालामे गया हरण गमेषी देवकों अष्टम कर स्मरण करने लगा। हरणगमेषी देव आयके बोला हे
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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