________________
भगवान वहांपर पधारे थे उन्हों कि देशना सुन हम छेवों भाइ संसारके सुखोंकों दुःखोंकि खान समझके भगवानके पासमें दीक्षा ले अभिग्रह कर लिया कि यावत् जीव छठ छठ पारणा करना। हे देवकी! आज हम छवों मुनिराज छठके पारणे भगवानकि आज्ञा ले द्वारका नगरीके अन्दर समुदाणी भिक्षा करने को आये थे हे बाइ! जो पेहले दोय सिंघाडे जो तुमारे वहां आगये थे वह अलग है और हम अलग है अर्थात् हम दोय तीनवार तुमारे घर नहीं आये है। हम एक ही वार आये है एसा कहके मुनि तो वहांसे चलके उद्यान में आ गये।
बाद में देवकीराणीकों एसे अध्यवसाय उत्पन्न हुवे कि पोलासपुर नगरमें अमंता नामके अनगारने मुझे कहा था कि हे देवकी! तुं आठ पुत्रोंकों जनम देगी वह पुत्र अच्छे सुन्दर स्वरूपवाले जेसे कि नल-कुबेर देवता सदृश होगा, दुसरी कोइ माता इस भरतक्षेत्रमें नहीं है । जोकि तेरे जैसे स्वरूपवान पुत्रको प्राप्त करे । यह मुनिका वचन आज मिथ्या ( असत्य) मालुम होता है क्यों :कि यह मेरे खन्मुख ही ६ पुत्र देखने में आते है कि जो अभी मुनि आये थे । और मेरे तो एक श्रीकृष्ण ही है देवकीने यह भी बिचार कीया कि मुनियोंके वचन भी तो असत्य नहीं होते है । देवकी राणीने अपनी शंका निवृत्तन करनेकी भगवान नेमिनाथजीके पास जानेका इरादा कीया। तब आज्ञाकारी पुरुषोंकों बुलवायके आज्ञा करी कि चार अश्ववाला धार्मीक रथ मेरे लीये तैयार करो। आप स्नान मन्जन कर दासीयों नोकर नाकरोंके वृन्दसे बडेही आडम्बरके साथ भगवानको वन्दन करनेको गइ विधिपुर्वक वन्दन करनेके बादमें भगवान फरमाते हुवे कि हे देवकी ! तुं छे मुनियोंको देखके