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________________ णीका घर था वहां मुनिको ले गइ वहां पर सिंह केसरिया मोदक उज्वल भावनासे दान दीया बादमें सत्कारपूर्वक विदा कर दीये । इतने में दुसरे सिंघाडे मि समुदाणी भिक्षा करते हुवे देवकीराणीके मकान पर आ पहुंचे उन्होंको भी पूर्वके माफीक उज्वल भावनासे सिंह केसरिये मोदकका दान दे विसर्जन किया। इतनेमें तीसरे सिंघाडेवाले मुनि भि समुदाणी भिक्षा करते देव. कीराणीके मकानपर आ पहुंचे। देवकीराणीने पुर्वकी माफीक उज्वल भावनासे सिंह केसरिये मोदकोंका दान दीया। मुनिवर जाने लगे। उस समय देवकीराणी नम्रतापूर्वक मुनियोंसे अर्ज करने लगी कि हे स्वामिनाथ! यह कृष्ण वसुदेवकी द्वारकानगरी जो बारह योजनकि लम्बी नव योजनकि चोडी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक सदृश जिन्होंके अन्दर बडे बडे लोक निवास करते है परन्तु आश्चर्य यह है कि क्या श्रमण निग्रन्थोंको अटन करने पर भि भिक्षा नहीं मिलती है कि वह बार बार एक ही कुल (घर) के अन्दर भिक्षाके लिये प्रवेश करते है ?* मुनियोंने उत्तर दिया कि हे देवकीराणी. एसा नहीं है कि द्वारकानगरीमें साधुवोंको आहारपाणी न मीले परन्तु हे श्राविका तुं ध्यान दे के सुन भद्रलपुर नगरका नागशेठ और सुलसाभार्याके हम छ पुत्र थे हमारे माता-पिताने हम छेवों भाइयांको बत्तीस बत्तीस इभ शेठोंकि पुत्रीयों हमकों परणाइथी दानके अन्दर १९२ बोलोंमे अगणित द्रव्य आया था हम लोग संसारके सुखोमें इतने तो मस्त बन गयेथे कि जो काल जाता था उन्होंका हमलोगोंको ख्याल भी नहीं था। एक समय जादवकुल श्रृंगार बावीसमा तिर्थकर नेमिनाथ * मुनियोंने स्वप्रज्ञास जान लिया कि हमारे दोय सिंघाडे भी पेहला यहांसे ही आहार-पाणी ले गये होंगे वास्ते ही देवकीराणीने यह प्रश्न कीया हैं तो अब इन्होंकी शंकाका पूर्ण ही समाधान करना चाहीये।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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