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इसी माफीक अनंतसेन ( १ ) अनाहितसेन (२) अजितसेन (३) देवयश (४) शत्रुसेन (५) यह छेवों नागसेठ सुलसा शेठाणी के पुत्र है बत्तीस बत्तीस रंभावोंको त्याग नेमिनाथ प्रभु पासे दीक्षा ले चौदा पूर्व अध्ययनकर सर्व वीस वर्ष दीक्षा व्रत पाल अन्तिम सिद्धाचलपर एकेक मासका अनसनकर चरम समय केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्ष गया इति छे अध्ययन |
सातवा अध्ययन - द्वारका नगरी में वसुदेव राजा के धारणी राणी सिंह स्वप्न सूचित-सारण नामका कुमरका जन्म पूर्ववत् ७२ कलाप्रविण ५० राजकन्यावका पाणीग्रहण पचास पचास बोलका दत्त भोगविलासमें मग्न था। नेमिनाथप्रभु कि देशना सुण दीक्षा ले चौदा पूर्वका ज्ञान । वीस वर्ष दीक्षापाल के अन्तिम श्री सिद्धाचलजी पर एक मासका अनसन अन्तमें केवलज्ञान प्राप्तीकर मोक्ष गये । इति सप्रमाध्ययन समाप्त |
आठवाध्ययन - द्वारका नगरीके नन्दनवनोद्यानमें श्री नेमिनाथ भगवान समोसरते हुवे । उस समय भगवान्के छे मुनि सगे भाइ सदृशत्वचा वय वडेही रूपवन्त नलकुबेर (वैश्रमणदेव ) सदृश जिस समय भगवान पासे दीक्षा ली थी उसी दिन अभिग्रह किया था कि यावत्जीव छठ तप- पारणा करना । जब उन्ही छवों मुनियोंके छठका पारणा आया तब भगवानकि आज्ञा ले दो दो साधुओंके तीन संघाडे हो के द्वारका नगरीका सहस्र वनोद्यानसे निकल द्वारका नगरीमें समुदाणी भिक्षा करते हुवे प्रथम दो साधुवोंका सिघाडा वसुदेव राजा कि देवकी नाम कि राणीका मकानपर आये । मुनियोंकों आते हुवे देख के देवकी राणी अपने आसन से उठके सात आठ पग सामने गद्द और भक्तिपूर्वक वन्दन नमस्कार कर जहाँ भात-पा