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________________ इभ सेठोंकी ३२ वर तरुण जोबन लावण्य चातुर्यता युक्त वय सर्व कुमरके सदृश देखके एकही दिनमें ३२ वर कन्याओंके साथ कुमरका पाणिग्रहण ( विवाह ) कर दीया उसी बत्तीस कन्या ओंके पिताओं नागसेठको १४२ वालोंका जेसे कि बत्तीस क्रोड सोनइयाका, बत्तीस कोड रुपइया, बत्तीस हस्ती, बत्तीस अश्व, रथ दाश दासीयों दीपक सेज गोकल आदि बहुतसा द्रव्य दीया नागशेठके बहुओं पगे लागी उसमें वह सर्व द्रव्य वहुओको दे दीया नागशेठने बत्तीस बहुवोंके लीये बत्तीस प्रासाद और बीच में कुमरके लीये बडा मनोहर महेल बना दीया जिन्होंके अन्दर बत्तीस सुरसुन्दरीयोंके साथ मनुष्य सम्बन्धी पंचेन्द्रिय के भोग सुखपुर्वक भोगवने लगे। . बत्तीस प्रकारके नाटक हो रहे थे मर्दगेके शिर फुट रहे थे जिन्होंसे काल जानेकि मालम तक कुमरकों नही पडती थी यह सब पूर्व किये हुवे सुकृतके फल है । पृथ्वी मंडलको पवित्र करते हुवे बावीसमा तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान सपरिवार-भद्रलपुर नगरके श्रीवनोद्यानमें प. धारे । राजा च्यार प्रकारकी सैनासे तथा नगर निवासी बडे ही आडम्बरके साथ भगवानकों वन्दन करनेको जा रहे थे । उस समय अनवयशकुमर देखके गौतमकुमर कि माफीक भगवानको वन्दन करनेकों गया भगवान की देशना सुन बतीस अन्तेवर और धनधान्य को त्यागके प्रभु पासे दीक्षा ग्रहण करके सामायिकादि चादे पूर्व ज्ञानाभ्यास कीया। बहुत प्रकारकि तपधर्या कर सर्व वीस वर्ष कि दीक्षापालनकर अन्तमें श्री शत्रुजय तीर्थपर एक मासका अनसनकर अन्तिम केवलज्ञान प्राप्त कर शास्वते सिद्धपदको वरलीया इति प्रथमाध्ययन।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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