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समयमें स्थिवरोंकी भक्ति कर इग्यारा अंगका ज्ञान कण्ठस्थ कर लिया। बादमे श्री नेमिनाथप्रभु द्वारकानगरीसे विहार कर अन्य जनपद देशमें विहार करते हुवे।।
गौतम नामका मुनि चोथ छठ अठमादि तपश्चर्या करता हवा एक दिन भगवान् नेमिनाथको वन्दन नमस्कार कर अर्ज की कि हे भगवान! आपकी आज्ञा हो तो में “मासीक भिखु प्रतिमा" नामका तप करं, भगवानने कहा “जहासुखम्” एवं दो मासीक तीन मासीक यावत् बारहवी एकरात्रीक भिखुप्रतिमा नामका तप गौतममुनिने कीया और भी मुनिकी भावना चढ जानेसे वन्दन नमस्कार कर भगवानसे अर्ज करी कि हे दयालु ! आपकी आज्ञा हो तो में गुणरत्न समत्सर नामका तप करुं। "जहासुखं" जब गौतममुनि गुणरत्न समत्सर तप करना प्रारंभ कीया । पहेले मासमें एकान्तर पारणा, दुसरे मासमें छठ छठ पारणा, तीसरे मासमें अठम अठम पारणा एवं यावत् सोलमे मासमें सोलार उपवासका पारणा एवं सोला मास तक तपश्चर्या कर शरीरको बीलकुल कृष अर्थात् सूका हुषा सर्पका शरीर माफीक हलते चलते समय शरीरकी हडीका अवाज जेसे काष्टके गाडाकी माफीक तथा सूके हुवे पत्तोंकी माफीक शब्द हो रहा था।
एक समय गौतम मुनि रात्रीमें धर्मचिंतषन कर रहा था उसी समय विचारा कि अब इस शरीरके पुद्गल बिलकुल कमजोर हो गये हैं हलते चलते बोलते समय मुझे तकलीफ हो रही है तो मृत्युके सामने केसरीया कर मुझे तैयार हो जाना चाहिये अर्थात् अनशन करना ही उचित है। बस, सूर्योदय होते ही
१ भिखुकी बारह प्रतिमाका विस्तारपूर्वक विवरण दशाश्रुत स्कन्ध सूत्रमें है वह देखो शीघ्रबोध भाग चोथा ।