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________________ है समुद्रको भुजासे तीरना है हे वत्स! साधु होने के बाद शिरका लोच करना होगा। पैदल विहार करना होगा, जावजीव स्नान नही होगा घरघरसे भिक्षा मांगनी पडेगी कबी न मीलनेपर 'सं. तोष रखना पडेगा। लोगोंका दुर्वचन भी सहन करना पडेगा आधाकर्मी उदेशी आदि दोष रहीत आहार लेना होगा इत्यादि बावीस परिसह तीन उपसर्ग आदिका विवरण कर माताने खुब समझाया और कहा कि अगर तुमको धर्मकरणी करना हो तो घरमें रहके करलो संयम पालना वडाहो कठिन काम है। पुत्रने कहा हे माता! आपका कहना सत्य है संयम पालना बडाही दुष्कर है परन्तु वह कीसके लिये ? हे जननी ! यह संयम कायरोंके लिये दुष्कर है जो इन्ही लोगके पुद्गलीक सुखोंका अभिलाषी है । परन्तु हे माता ! में तेरा पुत्र हु मुझे संजम पालना किंचित् भी दुष्कर नही है कारण में नरक निगोदमें अनन्त दुःख सहन कीया है। ... इतना वचन पुत्रका सुन माता समज गई कि अब यह पुत्र घरमें रहनेवाला नही है । तब माताने दीक्षाका बड़ा भारी महोत्सव कीया जेसेकि थावञ्चापुत्र कुमारका दीक्षा महोत्सव कृष्णमहाराजने कीया था (ज्ञातासूत्र अध्य०५ वे)इसी माफीक कृष्णवासुदेव महोत्सव कर गौतमकुमारको श्री नेमिनाथ भगवान पासे दीक्षा दरादी । विस्तार देखो ज्ञातासे। . श्री नेमिनाथ प्रभु गौतमकुमारको दीक्षा देके हितशिक्षा दी कि हे भव्य! अब तुम दीक्षित हुवे हों तो यत्नासे हलनचलन आदि क्रिया करना ज्ञान ध्यानके सिवाय एक समय मात्र भी प्रमाद नही करना। गौतममुनिने भगवानका वचन सप्रमाण स्वीकार कर स्वल्प
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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