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________________ लोक जा रहे है तो अपने भी चल कर वहां क्या हो रहा है वह देखेंगे। आदेश करते ही रथकारद्वारा च्यार अश्ववाला रथ तैयार हो गया, आप भी स्नानमन्जन कर वखाभूषणसे शरीरको अलंकृत कर रथपर बैठके परिषदाके साथ हो गये । परिषदा पंचाभिगम धारण करते हुवे भगवान के समोसरण में जाके भगवानको तीन प्रदक्षिणा देके सब लोग अपने अपने योग्यस्थानपर बैठ गये और भगवानकी देशना पानकी अभिलाषा कर रहे थे। भगवान् नेमिनाथ प्रभुने भी.उस आइ हइ परिषदाको धर्मदेशना देना प्रारंभ किया कि हे भव्य जीवो! इस अपार संसारके अन्दर परिभ्रमण करते हुवे जीव नरक, निगोद, पृथ्वी. अप, तेउ, वायु, वनस्पति और त्रसकायमें अनन्त जन्म-मरण किया है और करते भी है। इस दुःखोंसे विमुक्त करने में अग्रेश्वर समकितदर्शन है उन्हीको धारण कर आगे चारित्रराजाका सेवन करो तांके संसारसमुद्रसे जलदी पार करे। हे भव्यात्मन् : इस संसारसे पार होने के लिये दो नौका है (१) एक साधु धर्म (सर्वव्रत) (२) श्रावक धर्म (देशव्रत) दोनोंको सम्यक् प्रकारसे जाणके जैसी अपनी शक्ति हो उसे स्वीकार कर इस्में पुरुषार्थ कर प्रतिदिन उच्च श्रेणीपर अपना जीवन लगा देंगे तो संसारका अन्त होने में किसी प्रकारकी देर नहीं है इत्यादि विस्तारपूर्वक धर्मदेशनाके अन्तमें भगवानने फरमाया कि विषय-कषाय, रागद्वेष यह संसारवृद्धि करता है। इन्हींको प्रथम त्यागो और दान, शील, तप, भाव, भावना आदिको स्वीकार करो, सबका सारांश यह है कि जीतना नियम व्रत लेते हो उन्होंको अच्छी तरहसे पालन कर आराधीपदको प्राप्त करो तांके शिघ्र शिवमन्दिरमें
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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