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________________ ५३ पहुंच जावे । कृष्णादि परिषदा अमृतमय देशना श्रवण कर अत्यन्त हर्षसे भगवानको वन्दन- नमस्कार कर स्वस्थान गमन करती हुई । गोतमकुमार भगवानकी देशना श्रवण करते ही हृदयकमलमें संसार कि असारता भासमान हो गई । और विचार करने लगा कि यह सुख मैंने मान रखा है परन्तु ये तो अनन्त दुखोंका एक बीज है इस विषमिश्रत सुखोंके लिये अमूल्य मनुष्यभवको खो देना मुझे उचित नहीं है। एसा विचारके भगवानको वन्दन नमस्कार कर बोला कि हे त्रैलोक्य पूजनीय प्रभु! आपका वचनकि मुझे श्रद्धा प्रतित हुई और मेरे रोमरोम में रूच गयें है मेरी हाड - हाडकी मीजी धर्मरंग रंगाइ गइ है आप फरमाते हे एसाही इस संसारका स्वरूप है। हे दयालु ! आप मेरेपर अच्छी कृपा करी हैं मैं आपके चरणकमलमें दीक्षा लेना चाहता हूं परन्तु मेरे मातापिताको पुछके मैं पीछा आता हुँ । भगवानने फरमाया कि “जहासुखम” गौतमकुमार भगवानको वन्दन कर अपने घर पर आया और माताजी से कहता हुवा कि हे माताजी! मैं आज भंगवनका दर्शन कर देशना सुनी है जिससे संसारका स्वरूप जानके मैं भय प्राप्त हुवा हुं अगर आप आज्ञा देवे तो मैं भगवान के पास दीक्षा ले मेरा आत्माका कल्याण करूं । माता यह वचन पुत्रका सुनते ही मूर्छित हो धरतीपर गीर पडी दासीयोंने शीतल पाणी और वायुका उपचार कर सचेतन करी । माता हुसीयार होके पुत्र प्रति कहने लगी। कि हे जाया ! तुं मारे एक ही पुत्र है और मेरा जीवनही तेरे आधारपर है और तुं जो दीक्षा लेने की बात करता है वह मेरेको श्रवण करनाही कानोंको कंटक तुल्य दुःखदाता है। बस, | आज तुमने यह बात करी है परन्तु आइंदा से हम एसी बातें
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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