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________________ करनेका भी महाफल है तो यहाँ नन्दनवन में पधारे हुवे भगवानको वन्दन-नमस्कार करनेको जाना, देशना सुनना प्रभादि पुच्छना। इस फल (लाभ) का तो कहना ही क्या? वास्ते चली, भगवानको वन्दन करनेको । बस! इतना सुनते ही सब लोक अपने अपने स्थान जाके स्नानमन्जन कर अच्छार बहुमूल्य आभूषण वस्त्र धारण कर कितनेक गज, अश्व, रथ, सेविक, समदानी, पिजस, पालखी आदि पर और कितनेक पैदल चलनेको तैयार हो रहे थे। इधर बडे ही आडंबरके साथ श्रीकृष्ण च्यार प्रकारकी सैन्य लेके भगवानको वन्दनकों जा रहा था। द्वारकानगरीके मध्य बजारसे बड़े ही उत्सवसे लोग जा रहे थे, उन्ही समय इतनी तो गडदी थी कि लोगोंका बजारमें समावेश नहीं होता था। एक दुसरेको बोलाने में इतना तो गुंश शब्द हो रहा था कि एक दुसरेका शब्द पूर्ण तौरपर सुन भी नहीं सक्ते थे। जिस समय परिषदा भगवानको वन्दन करनेको जा रही थी, उस समय " गौतमकुमार" अपने अन्तेवरके साथ भोगविलास कर रहा था। जब परिषदाकी तर्फ द्रष्टिपात करते ही कंचुकी (नगरीकी खबर देनेवाला) पुरुषको बुलायके बोला-क्या आज द्वारकानगरीके बाहार किसी इन्द्रका महोत्सव है । नागका, यक्षका, भूतका, वैश्रमणका, नदी, पर्वत, तलाव, कुवा आदिका महोत्सव है तांके जनसमुह एक दिशामें जा रहा है ? कंचुकी पुरुषने उत्तर दिया कि हे नाथ ! आज किसी प्रकारका महोत्सव नहीं है । आज यादवकुलके तीलक समान बाधीशमा तीर्थकरका आगमन हुवा है, वास्ते जनसमुह उन्ही भगवानको वन्दन करनेको जा रहा है। यह सुनके गौतमकुमारकी भावना हुइ के इतने
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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