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________________ श्रवण करुं तब भगवानने शकडालको विस्तारसे धर्म सुनाया। वह शकडालपुत्र गोशालेका भक्त, भगवान वीरप्रभुकी मधुर भाषासे स्यावाद रहस्ययुक्त आत्मतत्व ज्ञानमय देशना श्रवण कर बडे ही हर्षको प्राप्त हुवा, बोला कि हे भगवान! धन्य है जो राजेश्वरादि आपके पास दीक्षा ग्रहन करते है मैं इतना समर्थ नहीं हुं परन्तु मैं आपकि समीप श्रावक धर्म ग्रहन करना चाहता हूं । भगवानने फरमाया कि जैसे सुख हो वैसा करो परन्तु धर्म कार्य में विलम्ब करना उचित नही है । तब शकडाल पुत्र कुंभकारने भगवानके पास आनन्दकी माफीक सम्यक्त्व मूल. बारह व्रतको धारण कीया परन्तु स्वाच्छा परिमाण किया. जिस्में द्रव्य तीन क्रोड सोनैया तथा अग्रमित्ता भार्या ओर दुकानादि मोकली रखी थी। शेष अधिकार आनन्दकी माफीक समझना । भगवानको वन्दन नमस्कार कर पोलासपुरके प्रसिद्ध मध्य बजार हो के अपने घरपे आया, और अपनी भार्या अग्रमित्ताको कहा कि मैंने आज भगवान वीरप्रभुके पास बारह व्रत प्रहन कीया है तुम भी जाओ भगवानसे धन्दन नमस्कार कर बारह व्रत धारण करो। यह सुनके अग्रमित्ता भी बड़े ही धामधूम आडम्बरसे भगवानको वन्दन करनेको गइ और सम्यक्ष मूल बारह व्रत धारण कर भगवानको वन्दन नमस्कार कर अपने घरपे आके अपने पतिको आज्ञा सुप्रत करती हुइ । अब दम्पति भगवानके भक्त हो भगवानके धर्मका पालन करते हुवे आनन्दमें रहने लगे। भगवान भी वहांसे विहार कर अन्य देशमें गमन किया। शकडाल कुंभकार और अनमित्ता भार्या यह दोनों जीवाजी- .
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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