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________________ .. एक समय शकडाल अपने मकानके अन्दरमै बहुतसे मट्टीके वरतनोको बाहार धूपमे रख रहाथा, उन्ही समय भगवान शग'डालसे पुच्छा कि हे शकडाल! यह मटीके बरतन तुमने कैसे बनाया है ? । शकडालने उत्तर दिया कि है भगवान पहिले हम लोग मटी लायेथे फीर इन्होंके साथ पाणी राखादिक मीलाके चक्रपर चडाके यह वरतन बनाये हैं। ____ हे शकडाल ! यह मटीके वरतन तेयार हुवा है वह उस्थानादि पुरुषार्थ करनेसे हुवे है कि विन पुरुषार्थसे। ... हे भगवान! यह सर्व नित्यभाव है भवीतव्यता है इसमें उस्थानादि पुरुषार्थकी क्या जरूरत है। __ हे शकडाल ! अगर कोई पुरुष इस तेरे मटीका वरतनकों कीसी प्रकारसे फोडे तोडे इधर उधर फेंक दे चौरीकर हरन करे तथा तुमारी अग्रमित्ता भार्यासे अत्याचार अर्थात भोगविलास करता हो, तो तुम उन्ही पुरुषको पकडेगा नही दंड करेगा नही यावत् जीवसे मारेगा नही तब तुमारा अनुस्थान यावत् अपुरुषार्थ ओर सर्व भाव नित्यपणा कहना ठीक होगा, ( ऐसा परताव दुनियांमे दीसता नहीं है। यह एक कीस्मकी अनीति अत्याचार है और जहांपर अनीति अत्याचार हो वहांपर धर्म केसे हो सक्ता है ) अगर तुम कहोगा कि मैं उन्ही नुकशान कर्ता पुरुषको मारुंगा पकडुंगा यावत् प्राणसे घात करूंगा तो तेरा क. हना अनुस्थान यावत् अपुरुषाकार सर्व भाव नित्य है वह मिथ्या होगा । इतना सुनतेही शकडाल को ज्ञान हो गया कि भगवान फरमाते है वह सत्य है क्यों कि पुरुषार्थ विना कीसी भी कार्यकी सिद्धि नही होती है। शकडालने कहा कि है भगवान मेरी इच्छा है कि मैं आपके मुखाविन्दसे विस्तारपूर्वक धर्म
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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