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बत् मोक्षके कामी, कल यहांपर पधारेंगे । हे शकडाल! उसका तुम वन्दना करना यावत् सेवा-भक्ति करके पाट, पाटला, मकान संस्तारक आदिका आमन्त्रण रना। एसा दो तीनवार कहके यह देवता जिस दिशासे आयाथा उस दिशामें चला गया। . दुसरे ही दिन भगवान वीरप्रभु अपने शिष्य मंडल-परिवारसे युक्त पृथ्वी मंडल पवित्र रते पोलासपुर नगरके बहार सहसाम्रोधानमे पधारे। राजा,प्रजा भगवानको वन्दन करनेको गये। यह वात शकडालको मालुम हुइ तब शकडाल गोशालाका भक्त होने पर भी स्नान कर सुन्दर वस्त्राभूषण सज बहुतसे मनुष्योंको साथ ले के पालासपुर नगरके मध्य बजारसे चलता हुवा भगवानके समीप आये । वन्दन नमस्कार कर योग्य स्थानपर बैठा । भगवानने उस विस्तारवाली परिषदाको धर्मदेशना सुनाइ जब देशना सम्गप्त हुई तब भगवान। शकडालपुत्र कुंभकार गोशालाके उपासकसे कहते हुवे कि हे शकडाल कल अशोकवाडीमे तेरे पास एक देवता आयाथा, उसने तुमकों कहाथा कि कल महामहन्त आवेगा यावत् उन्होंको पांचसो दुकानों ओर शय्या संथाराका आमन्त्रण करना । क्या यह वात सत्य है ? हां, भगवान् यह वात सत्य है मुझे ऐसाही कहाथा ।
हे शकडाल! देवताने गोशालाकी अपेक्षा नही कहाथा। इस पर शकडालने विचार किया कि जो अरिहंत केवली-सर्वज्ञ है तो भगवान वीरप्रभु ही है । वास्ते मुझे उचित है कि मेरी पांचसो दुकानों ओर पाट पाटला शय्या संस्थारा भगवानसे आमन्त्रण करुं । शकडालने अपनी दुकानों आदिकी आमन्त्रण करी ओर भगवानने भविष्यका लाभ जानके स्वीकार कर पोलासपुरके बहार पांचसो दुकानों ओर शय्या संथाराको पडिहारा “ लेके पीछा देना" ग्रहन करा।