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________________ भगवानने कुंडकोलिक श्रावककी तारीफ करी । बाद में बहुतसे साधु साध्वीयाँको आमन्त्रण करके भगवान ने कहा कि हे आर्यों: यह गृहस्थने गृहवासमें रहते हुवे भी हेतु द्रष्टान्त प्रश्नादि करके अन्य तीर्थ अर्थात् मिथ्यावादीयोंका पराजय किया है । तब तुम लोग तो द्वादशांगके पाठी हो वास्तं तुमको तो विशेष मिथ्यावादीयोंका पराजय करना चाहिये । इन्ही हितशिक्षाको सर्व साधुआंने स्वीकार करी। पीछे कुंडकोलिक श्रावक भगवानसे प्रश्नादि पुछ और वन्दन-नमस्कार कर अपने स्थान प्रति गमन करता हुवा। और भगवान भी अन्य जनपद-देशमें विहार करते हुवे। .. . कुंडकोलिक श्रावकने साढेचौदह वर्ष गृहवासमें श्रावक व्रत पालन किया और साढे पांच वर्ष प्रतिमा वहन करी। सर्वाधिकार कामदेवकी माफीक कहना अन्तमें आलोचना कर एक मासका अनशन समाधि सहित कालधर्म प्राप्त हुवा । वह सौधर्मदेवलोक के अरूणध्वज नामका वैमानमें च्यार पल्योपम स्थितिवाला देव हुवा। वहांसे आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्रमें आनन्दकी माफीक मनुष्यभवमें दीक्षा लेके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगा। (७) सातवां अध्ययन शकडालपुत्राधिकार. . पोलासपुरनगर, सहस्र वनोद्यान, जयशत्रुराजा, उस नगरके अन्दर शकडालपुत्र नामका कुंभकार था, उसको अग्रमित्ता नामकी भार्याथी. तीन क्रोड सोनेया द्रव्य था। जिसमें एक क्रोड धरतीमें, एक क्रोड व्यापारमें. एक क्रोड घर विक्री में था और
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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