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________________ अर्थात् सर्व कार्यकी सिद्धि पुरुषार्थसे ही मानी है वास्ते ठीक नही है। - यह सुनके कुंड कोलिक श्रावक बोला कि हे देव ! तेरा कहना है कि गोशालाका धर्म अच्छा है और धीरप्रभुका धर्म खराब है। अमर उत्स्थानादि विना कार्यकी सिद्धि होती है तो मैं तुमको पुछता हूं कि यह प्रत्यक्ष तुमको देवता संबन्धी ऋद्धि मीली है यह उत्स्थानादि पुरुषार्थसे मीली है या विना पुरुषार्थसे मीली है ? वह प्रत्यक्ष तेरे उपभोगमें आई है । देवने उत्तर दिया कि मेरेको यह ऋद्धि मीली है वह अनुस्थान यावत् अपुरुषार्थसे मीली है। यावत् उपभोगमें आई है । श्रावक कुंडकोलिक बोला कि हे देव ! अगर अनुस्थान यावत् अपुरुषार्थसे ही जो देवऋद्धि मीलती हो तो जिस जीवाँका उत्स्थानादि नहीं है ( एकेन्द्रियादि) उन्होंको देवऋद्धि क्यों नहीं मीलती है। इस वास्ते हे देव! तेरा कहना है कि गोशालाका धर्म अच्छा और महावीर प्रभुका धर्म खराब यह सब मिथ्या है अर्थात् झुठा है। यह सुनके देव वापस उत्तर देने में असमर्थ हुवा और अपनी मान्यतामें भी शंका कंक्षादि हुइ । शीघ्रतासे वह नामांकित मुद्रिकादि वापस पृथ्वीशीलापटपर रखके जिस दिशासे आया था उसी दिशामें गमन करता हुवा ।। भगवान धीरप्रभु पृथ्वी मंडलकी पवित्र करते हुवे कपील्लपुर नगरके सहस्राम्रोद्यानमें पधारे । कामदेवकी माफीक कुंडकोलिक श्रावक वन्दनको गया। भगवानने धर्मकथा फरमाइ । तत्पश्चात् भगवानने कुंडकोलिक श्रावकको कहा कि हे भव्य! कल मध्यान्हमें एक देवता तुमारे पास आया था यावत् हे श्रमणोपासक! तुमने ठीक उत्तर देके उस देवका पराजय किया। कामदेवकी माफीक
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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