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________________ २७ (६) छट्टा अध्ययन कुडकोलिकाधिकार. कपीलपुरनगर, सहस्र आम्र उद्यान, जयशत्रुराजा, उसी नगमें कुंडकोलिक नामका गाथापति बडाही धनाढ्य वसता था । उसको पुंसा नामकी भार्याथी, कामदेवकी माफीक अठारा क्रोड सनैया और साठ हजार गार्यो थी । भगवान वीरप्रभु पधारे, राजाप्रजा ओर कुंडकोलिक वन्दन करनेको गया । भगवानने धर्मदेशना दी । कुंडकोलिकने स्वइच्छा मर्यादाकर सम्यक्त्व मूळ बारह व्रत धारण कीया । एक समय मध्यान्हकालकी बखत कुंडकोलिक श्रावक अशोक वाडी में गयाथा, सामायिक करनेके इरादासे नामांकित मुद्रिकादि उतारके पृथ्वी शीलापटपर रखके भगवानके फरमाये हुवे धर्म चितवन कर रहा था । उस समय एक देवता आया । वह पृथ्वी शीलापटपर रखी हु नामांकित मुद्रिकादि उठाके देवता आकाशमें स्थित रहा हुवा कुंडकोलीका श्रावक प्रति ऐसा बोलता हुवा | भो कुंडोलिया ! सुन्दर है मंखली पुत्र गोशालाका धर्म क्योंकि जिन्होंके अन्दर उस्स्थान ( उठना) कर्म ( गमन करना ) वल ( शरीरादिका) वीर्य ( जीवप्रभाव ) पुरुषाकार (पुरुषार्थाभिमान ) इन्होंकी आवश्यकता नहीं है। सर्व भाव नित्य है अर्थात् गोशाला के मत में भवितव्यताको ही प्रधान माना है वास्ते उत्स्थानादि क्रिया कष्ट करनेकी आवश्यक्ता नहीं है । और भग'वान महावीर स्वामिका धर्म अच्छा नहीं है क्योंकि जिसके अन्दर उत्स्थान, कर्म. बल, वीर्य ओर पुरुषाकार बतलाये हैं
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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