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________________ नामकी भार्या थी और अठारह क्रोडका द्रव्य, साठ हजार गायों यावत् बडाही धनाढ्य था । भगवान वीरप्रभु पधारे। राजा, प्रजा और चुलशतक बन्दनको गये । भगवानने अमृतमय देशना दी। चुलशतक आनन्द की माफीक स्वइच्छा मर्यादा कर सम्यक्त्व मूल बारह व्रत धारण कीया। चुलनिपिताकी माफीक इसको भी देवताने उपसर्ग कोया। परन्तु एकेक पुत्रके सात सात खंड किया। चोथी बखत देवता कहने लगा कि अगर तुं धर्म नहीं छोडेगा तो मैं तेरा अठारा क्रोड सोनयाका द्रव्य इसी आलंभीया नगरीके दो तीन यावत् बहुतसे रास्तेमे फेकदंगा कि जिन्होंके जरिये तुं आर्तध्यान करता हुआ मृत्यु पामेगा। यह सुनके चुलशतकने पूर्ववत् पकडने का प्रयत्न कीया इतने में देव आकाश गमन करता हुवा । कोलाहल सुनके बहुला भार्याने कहा कि आपके तीनों पुत्र घरमें सुते हैं यह कोड देवने आपको उपसर्ग किया है । वास्ते इस बातकी आलोचना लेना । चुलशतकने स्वीकार किया। चुलशतकने साढे चौदह वर्ष गृहवासमें श्रावकपणा पाला, साढे पांच वर्ष इग्यारा प्रतिमा वहन कीया; अन्तमें आलोचना कर एक मास अनसन कर समाधिमें काल कर सौधर्म देवलोकके अरूणश्रेष्ट वैमानमें च्यार पल्योपमकी स्थितिमें देवपणे उत्पन्न हुवा । वहांसे आयुष्य पूर्णकर महाविदहमें मोक्ष जावेगा। अतिशम् ॥ ५॥
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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