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एक रोज सूरादेव पौषधशालामें पौषध कर अपना आत्मध्याव
कर रहा था।
अर्ध रात्री के समय एक देवता आया। जैसे चुलनिपिताकां उपसर्ग कीया था इसी माफीक सुरादेवको भी कीया । परन्तु - इन्होंके एकेक पुत्रका पांच पांच खंड किया था और चोथीवार. कहने लगा कि अगर तुं तेरा धर्म नहीं छोडेगा तो मैं आज तेरे . शरीरमें जमगममगादि सोलह बड़े रोग है वह उत्पन्न कर दूंगा। यह सुनके सूरादेव चुलनिपिताकी माफीक पकडनेको प्रयत्न किया । इतने में देवने आकाशगमन किया। हाथमें स्थंभ आया । कोलाहाल सुनके धन्ना भार्याने कहा हे स्वामिन्! आपके तीनों पुत्र धरमे सुते हैं परन्तु कोई देवने आपको उपसर्ग किया है। यावत् आप इस स्थानकी आलोचना करना इस बातको सूरादेवने स्वीकार करी ।
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सूरादेव श्रावकने साढेचौदह वर्ष गृहस्थावासमें रह कर श्रावक व्रत पाला, साडेपांच वर्ष तक इग्यारे प्रतिमा वहन करी । अन्तमें आलोचना कर एक मासका अनशन कर समाधिपूर्वक काल कर सौधर्मदेवलोक में अरूणकन्त नामका वैमानमें च्यार पल्योपमकी स्थितिवाला देवता हुवा | वहांसे महाविदेहक्षेत्र में मोक्ष जावेगा ॥ इतिशम् ॥ ४ ॥
(५) पांचवा अध्ययन चुलशतकाधिकार.
आलंभीया नगरी, संखवनोद्यान, जयशत्रु राजा था। उस नगरीमें चुलशनक नामका गाथापति वसता था । उसको बाहुला