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माता पौषधशालामें आके बोली कि हे पुत्र! क्या है ? चुलनिपिताने सब बात कही । तब माता बोली कि हे पुत्र ! तेरे पुत्रोंको किसीने भी नहीं मारा है किन्तु कोइ देवता तुझे क्षोभ करनेकी आवाथा उसने तुझे उपसर्ग किया है ! तो हे पुत्र ! अब तुं जो रात्रीमें कोलाहल कीया है उससे अपना नियम-प्रत पौषधका भंग हुषा है वास्ते इसकी आलोचना कर अपने ब्रतको शुद्ध . करना । चुलनिपिताने अपनी माताका वचनको स्वीकार कीया।
. चुलनिपिताने साढाचौदह वर्ष गृहस्थावास में रहके श्रावक व्रत पाला, साढे पांच वर्ष इग्यारे प्रतिमा वहन करी, अन्तमें एक मासका अनसन कर समाधि सहित कालकर सौधर्म देवलोकमें अरूणप्रभ नामका देवविमानमें च्यार पल्योपमकी स्थितिघाला देव हुवा है । वहांसे आयुष्य पूर्णकर महाविदेह क्षेत्रमें मनुष्य हो दीक्षा ले केवलज्ञान प्राप्त हो मोक्ष जावेगा ॥ इतिशम् ॥ ३॥
(४) चोथा अध्ययन सूरादेवाधिकार.
- बनारसी नगरी, कोष्टक उद्यान, जयशत्रु राजा था। उस नगरोमें सुरादेव नामका गाथापति था। उसको धन्ना नामकी भार्या थी। कामदेवके माफीक अठारा क्रोड द्रव्य और माठ हजार गायों थी। किसीसे भी पराजय नहीं हो सका था।
भगवान वीरप्रभु पधारे। राजा प्रजा और सूरादेव वन्दनको गया। भगवानने धर्मदेशना दी। सूरादेवने आनन्दके माफीक स्वइच्छा मर्यादा कर सम्यक्त्व मूल बारह व्रत धारण किया ।