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________________ उसीके प्रभातकालमें सूर्योदय के बरूत कामदेवको समाचार आया कि भगवान वीरप्रभु पूर्णभद्र उद्यानमें पधारे हैं। कामदेवने विचारा कि आज भगवानको वन्दन-नमस्कार कर देशना श्रवण करके ही पौषध पारेंगे। ऐसा विचार करते ही अच्छे सुन्दर वस्त्राभूषण धारण कर भगवानको वन्दन करनेको गया। राजादि और भी परिषदा आइ थी। उन्होंको भगवानने जगतारक देशना दी। देशना देनेके बादमें भगवान वीरप्रभु कामदेव श्रावक प्रति बोले कि हे कामदेव! आज रात्रीके समय देवताने पिशाच, हस्ति और सर्प इम तिन रूपको बनाके तेरेको उपसर्ग कीया था ? कामदेव ने कहा कि हां, भगवान यह बात सत्य है । मेरेको तीनों प्रकारसे देवने उपमर्ग किया था। - भगवान धीरप्रभु बहुतसे श्रमण-निर्ग्रथ-साधु तथा साध्वीयोको आमन्त्रण करके कहते हुवे कि हे आर्य! यह कामदेवने गृहस्थावासमें रह कर घोर उपसर्ग सम्यक् प्रकारसे सहन किये हैं। तो तुम लोगोंने तो दोक्षाप्रत धारण कीये हैं और द्वादशांगीके ज्ञाता हो वास्ते तुम लोगोंको देव, मनुष्य और तिर्यचके उपसगोको अवश्य सम्यक प्रकारसे सहन करना चाहिये। यह अमृतमय वचन श्रवण कर साधु साध्वीयोंने विनय सहित भगवानके वचनोको स्वीकार कीया। - कामदेव भगवानको प्रभादि पुछ, बन्दन-नमस्कार कर अपने स्थान प्रति गमन करता हुना। और भगवान भी वहांसे बिहार कर अन्य देशमें विहार करते हुवे । कामदेव श्रावकने १४॥सढे चौदह वर्ष गृहस्थाबासमे श्रावक धर्मका पालन किया और ५॥ साढेपांच वर्ष प्रतिमा पहन करी।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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