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अन्तमें एक मासका अनशन कर आलोचना कर समाधिमे काल कर सौधर्मदेवलोकमें अरूण नामका विमानमें च्यार पल्योपम स्थितिवाला देव हुवा। वहांसे आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्रमें मोक्ष जावेगा ॥ इतिशम् ॥२॥
(३) अध्ययन तीसरा चुलनिपिताधिकार.
बनारसी नगरी कोष्टक उद्यान, जयशत्रु राजा राज करता था। उस नगरीमें एक चुलनिपिता नामका गाथापति बडाही धनाढ्य था। उसको शोभा नामकी भार्या थी। चोवीस क्रोड सोनेयाका द्रव्य था। जिसमें आठ क्रोड धरतीमें, आठ क्रोड व्यापारमें और आठ क्रोडका घर वीक्रिमें था। और आठ वर्ग अर्थात् एंसी हजार गौ (गायों ) थी। आनन्दके माफीक नगरीमें बडा माननीय था।
भगवान वीरप्रभु पधारे । राजा और चुलनिपिता वन्दन करनेको गये। भगवानने धर्मदेशना दी। आनन्दकी माफीक चुलनिपिताने भी स्वइच्छा परिमाण रखके श्रावकके व्रत धारण कर भगवानका श्रावक बन गया।
एक समय पौषधशालामें ब्रह्मचर्य सहित पौषध कर आत्म रमणता कर रहा था। अर्द्ध रात्रीके समय एक देवता हाथमें निलोत्पल नामकी तलवार ले के चुजनिपित श्रावक के पास आया ओर कामदेवकी माफीक चुलनिपिताको भी धर्म छोडने की अनेक धभकीयां दी । परन्तु चुल० धर्मसे क्षोभायमान नहीं