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________________ हुवा अटल-1 - निश्चल रहा। दुष्ट देवने कामदेवको बहुत उपसर्ग किया परन्तु धर्मबीर कामदेवको एक प्रदेश मात्र में भी क्षोभित करनेको आखीर असमर्थ हुवा । देवताने उपयोग लगाके देखा तो अपनी सब दुष्ट वृति निष्फल हुई। तब देवताने सर्पका रूप छोड के एक अच्छा मनोहर सुन्दराकार वस्त्राभूषण सहित देव रूप धारण किया और आकाशके अन्दर स्थित रहके बोलता हुवा कि हे कामदेव ! तुं धन्य है पूर्व भव में अच्छे पुन्य कीया है। है कामदेव ! तुं कृतार्थ है । यह मनुष्य जन्मको आपने अच्छी तरहसे सफल किया है। यह धर्म तुमको मीला ही प्रमाण है । आपकी धर्मके अन्दर दृढता बहुत अच्छी है । यह धर्म पाया ही आपका सार्थक है । हे कामदेव ! एक समय सौधर्म देवलोक की सौधर्मी सभा के अन्दर शक्रेन्द्रने अपने देवताओंके वृन्दमें बैठा हुवा आपकी तारीफ और धर्मके अन्दर दृढताकी प्रशंसा करीथी परन्तु मैं मूढमति उस वातको ठीक नही समजके यहांपर आके आपकी परिक्षाके निमत्त आपको मैंने बहुत उपसर्गे किया है परन्तु हे महानुभाव ! आप निर्ग्रन्थ के प्रवचनसे किंचतू भी क्षोभायमान नही हुवे । वास्ते मैंने प्रत्यक्ष आपकी धर्म दृढताको देखली है । हे आत्मवीर अब आप मेरा अपराधकी क्षमा करे, ऐसी वारवार क्षमा याचना करता हुवा देव बोला कि अब ऐसा कार्य मैं कभी नहीं करूंगा इत्यादि कहता हुवा कामदेवको नमस्कार कर स्वर्गको गमन करता हुवा | तत्पश्चात् कामदेव श्रावक निरूपसर्ग जानके अपने अभि ग्रह ( प्रतिज्ञा ) को पालता हुवा | जिस रात्रीके अन्दर कामदेव श्रावकको उपसर्ग हुवा था
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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