SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिशाचरूप देवने कामदेवको धर्मपरसे नहीं चला हुवा देखके आप पौषधशालासे निकलकर पिशाचरूपको छोडके एक महान हस्तीका रूप बनाया। यह भी बडा भारी भयंकर रौद्र और जिसके दन्ताशुल बडे ही तीक्ष्ण थे । यावत् देव हस्तीरूप धारण कर पौषधशालामें आके पहेलेकी माफीक बोलता हुवा कि भो कामदेव ! अगर तुं तेरा धर्मको न छोडेगा तो मैं अभी तेरेको इस सुंढ द्वारा पकड आकाशमें फेंक दूंगा ओर पीछे गीरते हुवे तुमको यह मेरी तीक्षण दन्ताशुल है इसपर तेरेको पो दूंगा और धरतीपर खुब रगडुंगा तांके तुं आर्तध्यान रौद्रध्यान करता हुवा मृत्यु धर्मको प्राप्त होगा। ऐसा दो तीन दफे कहा, परन्तु कामदेव श्रावक तो पूर्ववत् अटल-निश्चल आत्मध्यानमें ही रमण करता रहा भावना सर्व पूर्ववत् ही समझना। .. हस्तीरूप देवने कामदेवको अक्षोभ देखके बडाही क्रोध करता हुवा कामदेवको अपनी सुंढमें पकड आकाशमें उछाल दीया और पीछे गीरते हुवेको दन्ताशुलसे जैसे त्रीशुलमें पो देते हैं इसी माफीक पकडके धरतीपर रगडके खुब तकलीफ दी परन्तु कामदेवके एक प्रदेशको भी धर्मसे चलित करनेको देव समर्थ नहीं हुवा। कामदेवने अपने बान्धे हुवे कर्म समझके उन्ही उज्वल वेदनाको सम्यक् प्रकारसे सहन करी। देवने कामदेवको अटल-निश्चल देखके पौषधशालासे निकल हस्तीके रूपको छोड वैक्रिय लब्धिसे एक प्रचन्ड आशीविष सर्पका रूप बनाके पौषधशालामें आया। देखने में बडाही भयंकर था, वह बोलने लगा कि हे कामदेव ! अगर तुं तेरा धर्म नहीं छोडेगा तो मैं अभी इस विष सहित दाढोंसे तुजे मार डालूंगा इत्यादि दुर्वचन बोला परन्तु कामदेव विलकुल क्षोभ न पाता
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy