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________________ स्वामि बोले कि हे आनन्द जो सम्यक्त्य सहित व्रत लेते हैं उ. सको पेस्तर व्रतोंके अतिचार जो कि व्रतोंके भंग होने में मददगार है उसको समझके दूर करना चाहिये । यहां पर सम्यक्त्वके ५ और बारह व्रतोंके ६० कर्मादानके १५ संलेखनाके ५ एवं ८५ अतिचार शास्त्रकारोंन बतलाये हैं। किन्तु वह अतिचार प्रथम जैन नियमावली में लिखे गये है वास्ते यहांपर नहीं लिया है। जिसको देखना हो वह " जन नियमावली" से देखे । ___ आनन्द गाथापति भगवान् वीरप्रभुसे सम्यक्त्व मूल बारह व्रत धारण करके भगवानको वन्दन-नमस्कार करके बोला कि हे भगवान ! अब आज मैं सच्चे धर्मको ममझ गया हूं । वास्ते आजसे मुझे नहीं कल्पे जो कि अन्यतीर्थी श्रमण.शाक्यादि तथा अन्यतीर्थीयोंके देव हरि, हलधरादि और अन्यतीर्थीयोंने अरिहंतकी प्रतिमा अपने देवालयमें अपने कबजे कर देव तरीके मान रखी है. इन्ही तीनोंको वन्दन-नमस्कार करना तथा श्रमणशाक्यादिको पहिले बुलाना, एकवार या वारवार उन्होंसे वार्तालाप करना और पहिलेकी माफिक गुरु समजके धर्मबुद्धिसे आसनादिचतुर्विधाहा. रका देना या दूसरोंसे दिलाना यह सर्व मुझे नहीं कल्पते हैं । परन्तु इतना विशेष है कि मैं संसारमें बैठा हे वास्ते अगर (१) गजाके कहनेसे (२) गणसमूह-न्यातके कहनेसे (३) बलवन्तके कहनेसे (४) देवताओंके कहनेसे (..) मातापितादिके कहनेसे (६) सुखपूर्वक आजीविका नहीं चलती हो। अर्थात् ऐसी हालतमें किसी आजीविकाके निमित्त उक्त कार्य करना भी पडे यह रे प्रकारके आगार है। अब आनन्द श्रावक कहता है कि मुझे कल्पे माधु-निर्ग्रन्थ को फासुक, निर्जीव, निर्दोष अशन पान खादिम स्वादिम वस्त्रपात्र
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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