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________________ कंबल रजोहरण पीठ फलगशय्या संस्थारक औषध भैषज देता हुवा बिचरना । ऐसा अभिग्रह धारण कर भगवानको वन्दन कर प्रश्नादि पूछके अपने स्थानको गमन करता हुवा । आनन्द श्रावक अपने घरपर जायकं अपनी भार्या सिवानन्दाको कहता हुवा । हे देवानुप्रिय ! मैं आज भगवान वीरप्रभुकी अमृत देशना श्रवण कर सम्यक्त्व मूल बारह व्रत धारण किया है वास्ते तुम भी भगवानको वन्दन कर बारह व्रत धारण करो। सिवानन्दा अपने पतिका वचन सहर्ष स्वीकार कर स्नान-मजन कर शरीरको वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत कर अपनी दामीयां आदि परिवार सहित भगबान्के निकट आइ। वन्दन कर श्रावकके १२ व्रतोंको धारण कर अपने स्थानपर आके अपने पतिकी आज्ञाको सुप्रत करती हुइ । .. भगवानको वन्दन कर गौतमस्वामिने प्रश्न कियो कि हे भगवन् ! यह आनन्द श्रावक आपके पास दीक्षा लेगा? भगवान्ने उत्तर दिया कि हे गौतम ! आनन्द दीक्षा न लेगा, किन्तु बहुतसे वर्ष श्रावक व्रत पालके अन्त में अनशन कर प्रथम देवलोकमें अरूणनामका विमानमें उत्पन्न होगा। गौतमस्वामि यह सुनके वन्दना कर आत्मरमणतामै रमण करने लगे। . भगवान् एक समय वाणीयाग्राम नगरके उधानसे बिहार कर अन्य देशमें विहार करते हुवे विरचने लगे। .. आनन्द श्रावक जीव, अजीव, पुन्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष और क्रिया अधिकरणादिका जानकार हुवा जिसकी श्रद्धाको देवादिक भी क्षोभित न कर सके। यावत् निजात्मामें रमण करते हुए विचरने लगा। .. आनन्द श्रावक उच्च कोटीके व्रत प्रत्याख्यानादि पालन करते हुवे साधिक चौदह वर्ष पूरण कीये उसके बाद एक
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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