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________________ ॥ ॐ नमः ॥ ॥ स्वर्गस्थ पूज्यपाद परमयोगी सतांमान्य प्रभाते स्मरणीय मुनि श्री श्री श्री १००८ श्री श्रीमान् रत्नविजयजी महाराज साहबके कर कमलोंमें सादर समर्पण पत्रिका | पूज्यवर ! आपने भारत भूमिपर अवतार ले, असार संसारको जलांजली दे, बाल्यकालमें ( दश वर्षकी अल्पावस्थामें ) जन्मोद्धारक दीक्षा ले, जैनागमोंका अध्ययन कर, सत्यसुगंधीको प्राप्त कर, अशुभ असत्य ढूँढक वासनाकी दुर्गंधसे घृणित हो अठावीस वर्षकी अवस्थामें समुचीत मार्गदर्शी श्रीमान विजयधर्मसूरीश्वरजीके चरणसरोजमें भ्रमरकी तरह लिपट गए. ऐसी आपकी सत्यप्रियता ? इसी सत्यप्रियताके आधीन हो मैं इन आगमरूपी पुष्पोंकों आपके आगे रखता हूँ. क्यों कि आपके जैसा सत्यनिष्ट और अनेकागमावलोकी इस पामरकों कहीं मिलेगा ? परमपुनीत पूज्य ? आपने गिरनार और आबू जैसे गिरिवरोंकी गुफाओ में निर्भीकतासे निवाश कर, अनेक तीर्थ स्थानोंकी पुनीत भूमीओंमें रमण कर, योगाभ्यासकी जैनोंमें से गई हुई कीर्तिको अह्वाहन कर पुनः स्थापीत कर गए. इसलिए आपके सूक्ष्मदर्शिताके
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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