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है। अजीवके पांच भेद हैं। धर्मास्ति काय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय पुद्गगास्तिकाय और काल। अगर पहले जीव मानते हैं तो आकाशविना जीव कहां ठेरा था, धर्मास्ति विना जीव गमन केसे कर शके, अधर्मास्ति विना जीव स्थिर केसे रहशके । अगर पहेले अजीव मानते हैं तो जीव विना धर्मास्ति . किसकों साहिता देती थी, अधर्मास्ति किसको स्थिर करती थी इत्यादि अनेक दोषण उत्पन्न होते हैं । वास्ते केवल ज्ञानसे सम्यक् प्रकार देखनेवाले अनन्त तीर्थंकरोंने जीव अन व दोनों अनादिकालके सास्वते पदार्थ कहे हैं। न किसीने उत्पन्न किया है न कबी विनास होगा । इसी माफोक सिद्ध और संसारी इसी माफीक मोक्ष और संसार भो सास्वते पदार्थ कहे हैं । इसीकी पुष्टीके लिये निम्न प्रश्न पर विचार करा। __.. (प्र०) हे भगवान ! पहेला कुकड़ी हुई या ईडा तथा पहेला इंडा हुवा कि कुकड़ी?
(उ०) हे रोहा। कुकड़ी भी सास्ती है और ईड़ा मी सास्वता है क्योंकि कुकड़ी विना ईड़ा हो नहीं सकता है और इंडा विना कुकड़ी हो नहीं सकती वास्ते ज्ञानी पुरुषोंने अनादिकालसे कुकड़ी और ईड़ाकों स स्वता बतलाया है।
(१०) हे भगवान । पेहला लोकांत पीछे अलोकांत है कि पहला अलोकान्त और पंछे लोकान्त है ? . . (उ०) हे रोहा ! दोनों सास्वते है । भावना पूर्ववत । ।
(३) एवं लोकान्त और सातवीं नरकका आकाशान्त । .