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(18) होजानेसे इतना वेगसे बाण नहीं फेंक शक्ता है वास्ते समझके मानलोकि जीव और काया अलग अलग है। ... (७) हे भगवान् एक समय कोतवाल जीवता हुवा चौरकों मेरे पास लाया, मैं उन्हीं जीवता हुवा चौरके दोय तीन च्यार 'पंच यावत् संख्याते खंड करके खंड खंडमें जीवकों देखने लगा परन्तु मेरे देखने तो जीव कहीं भी नहीं आया तो मैं जीव
और शरीरकों अलग अलग केशे मानु अर्थात् मेरा माना हुवा ही ठीक है ?
(उत्तर) हे राजन् कठीयाडोंका समुह एक समय एकत्र मीलके एक वनमें काष्ट लेनेकों गये थे वह सर्व एक स्थान पर स्नान मज्जन देव पूजन कर भोजन करके एक कठोयाडाकों कहा कि हम सब लोक काष्ट लेने को जाते है और तुम यहा पर रहो यहाँ जों अग्नि है इन्हों कि सरक्षण करो और टैम पर रसोइ तैयार रखना अगर अग्नि बुन भी ज वे तो यह जो आरणकि लकडी है इन्होसे अग्नि निकाल लेना । हम सब लोक काष्ट लावेगे उन्होंके अन्दरसे कुच्छ ( थोडा थोडा ) तुमकों भी देदेकें बरावर बना लेवेगे एस करके सर्व लोक वनमें काष्ट लेनेको चले गये । बाद मे पीछे रहा हुचा कठीयाडा प्रमादसे उन्ही अग्निका संरक्षण कर नही सका। अग्नि बुन जाने पर आरंणकि लकडीयों लाके उसके दोय तीन च्यार पंच यावत् संख्याते खंड करके देखा तो काही भी अनि नही मीली तब सर्व कठीयाडोंको असत्य समझता हुवा निरास होके बेठ गया । इतनेमें वह सब लोक काष्ट लेके आया और देखा तो अग्नि भी नही भारणकि लकडीयों भी सब तुटी हुइ पड़ी