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रहा फीर कितनेक समय होजानेसे. उन्ही कोटीको इदर उदर ठीक तलास करनेपर काही भी छेद्र न पाये कोठीकों खोलके देखा तो वह चौर मृत्यु प्राप्त दृष्टीगोचर हुवा तब म्हैने निश्चय कर लिया कि जीव और शरीर एक ही है क्युकि अगर जीव जुदा होता तो कोटोसे निकलने पर छेद्र अवश्य होता परन्तु छेद्र तो कोइ भी देखा नहीं वास्ते हे भगवान् मेरा मानना ठीक है कि जीव काया एक ही है ?
(उत्तर ) हे राजन् यह तेरी कल्पना ठीक नहीं है कारण जीव तो अरूपी हैं और जीव कि गति भी अप्रतिहत अर्थात् किसी पदार्थ से जीवकी गति रूक नहीं शक्ती है मगर कोठोके छेद्र न होनेसे ही आपकी मति भ्रम हो गई हो तो सुनो । एक कुडागशाला अर्थात् गुप्त घरके अन्दर एक ढोल डाके सहित मनुष्यकों बेठाके उन्होंका सर्व दरवाजा और छेद्रोंकों बीलकुल बन्ध कर दे ( जेसे आपने कोटीका छेद्र बन्ध किया था) फिर वह मनुष्य गुप्त घरमें ढोल मादल बनावे तो हे राजन् उन्ही बानाकी आवाज बाहारके मनुष्य श्रवण कर शक्ते है ? हां भगवन् अच्छी तरहेसे सुन शकते है। हे राजन् वह शब्द अन्दरसे बाहार पाये उन्होंसे गुप्त घरके कोइ छीद्र होता है ? नहीं भगवन् तो हे राजन् यह अष्ट स्पर्शवाले रूपी पौदगल अन्दरसे बाहार निकलनेमें छेद्र नहीं होते है तो जीव तो अरूपी है उन्होंके निकलनेसे तो छेद्र होवे ही काहासे वास्ते हे प्रदेशी तु समझके मान ले के जीव और शरीर अलग अलग है।
(४) हे भगवन् एक समय कोतवाल एक चौरको पकड़के मेरे पास लाया हैं उन्हीं चौरको मारके एक लोहाकी कोटीमें डाल