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________________ उन्हीं लंपटकों छोड दोगे ? नहीं भगवान् एसे अकृत करनेवालोंको केसे छोडा जावे अर्थात् एक क्षण मात्र मी नहीं छोडु । इसी माफीक हे राजन् नारकिके नैरियोंकों भी क्षण मात्र यहां आनेको नहीं छोड़ा जाता है और भी सुनो नारकीके नैरिये यहां आना चाहते है तद्यपि च्यार कारणोंसे नहीं आ शक्ते है यथा... (१) तत्काल उत्पन्न हुवा नारकीके महावेदनिय कर्मक्षय नहीं हुवे वास्ते आना चाहते हुवे भी आ नहीं शक्ते है अर्थात वहां वेदना भोगवनी ही पडती है। (२) तत्कालोत्पन्न हूवे नारकी परमाधामी देवताओंके आधिन हो रहे है वह देवता एक क्षीण मात्र भी उन नारकीकों विसरामा नहीं लेने देते है वास्ते नहीं आ शक्ते है। (३) तत्कालोत्पन्न हूवे नारकी किये हुवे नरक योग्य कर्म पूर्ण भोगव नहीं शक्या वास्ते नारकी आ नही शक्ते है। . (४) नारकीका मायुष्य बन्धा हुवा है वह पुरणक्षय नहीं कीया है वास्ते आना चाहते हुवे भी नारकीके नैरिया यहां पर आ नहीं शक्ते है। इस वास्ते हे राजन् तू मानले कि जीव और काया भिन्न.. भिन्न है। (३) प्रश्न- हे भगवन् एक समय मैं सिंहासनपर बेठा था उन्ही समय कोतवाल एक चौरकों पकडके मेरे पास लाया मैंने उसी जीवते हुवे चौरको एक लोहा कि मजबुत कोठीमें प्रवेश कर उपरसे ढकणा बन्ध कर दिया और एसी मजबूत कोठीकों कर दी कि वायुकायकों भी उसी कोठीमे आने जानेका च्छेद्र नही
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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