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(५२) उद्यानमे पधार गये है उन्होंको मकान पाटपाटला ज्ञय्या संथारा देके मैं आपके पास आया हूं।
चित्त प्रधान आनन्दीत चित्तसे वनपालककों वधाइदेके नगर निवासीयोंको खबर कर दी उसी समय हजारों लोकोंके साथ प्रधानजी केशीश्रमणजी महाराजको वन्दन करनेको आये भक्ति पूर्व वन्दन कर धर्मदेशना सुनी मुनियोंको गौचरी आदिसे खुक मुख साता उपनाई । श्वेतांबिका नगरीमें आनंद मंगल वर्त राहा था।
एक समय चित्त प्रधान गुरू महाराजसे अर्ज करी कि हे भमान आप हमारे प्रदेशी राजाकों धर्म सुनावों । मुझे खसरी है कि आपका प्रभाव शाली व्याख्यान श्रवण करनेसे प्रदेशी राजक अवश्य आपका पवित्र धर्मको स्वीकार करेगा? ' हे चित्त प्रधान च्यार प्रकारके नीव धर्म सुनाने लायक नहीं होते है यथा-(१) साधु मुनिराज आते है ऐसा सुनके सामने क जाता हो (२) मुनिराज उद्यानमें मा जाने पर भी वहां जाके. वन्दन न करता हो (३) मुनिराज अपने घर पर आ जाने पर भी वन्दन भक्ति न करता हो (४) मुनिराज रस्तेमें सामने मीक, जाने पर भी वन्दन भक्ति न करता हो । हे चित्त तुमारे प्रदेशी रानामें च्यारों बोल पाते हे अर्थात् प्रदेनी राजा हमारे पास ही नहीं आवे तो मैं धर्म कैसे सुना सक्ता हूं।
चित्त प्रधान बोला कि हे भगवान हमारे वहां कम्बोज देशके च्यार मच आये हैं उन्हीकों फीरानेके हेतुसे मैं प्रदेशी राजाकों आपके पास के आउंगा फीर आपके मनमाना धर्म प्रदेशी